इतिहास कक्षा छठवीं अध्याय 6 नवीन धार्मिक विचारों का उदय/

सामाजिक विज्ञान  (इतिहास)

कक्षा छठवीं 

अध्याय 6 नवीन धार्मिक विचारों का उदय



अभ्यास के प्रश्न

 ( अ ) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

 ( 1 ) महावीर स्वामी का जन्म 540 ई . पू . में हुआ था । 

( 2 ) महात्मा बुद्ध का जन्म लुम्बिनी नामक स्थान में हुआ था|

(3) महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था । 

( 4 ) महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को 'त्रिपिटक ' नामक ग्रंथों में संकलित किया गया है ।

 ( 5 ) सम्यक ज्ञान , सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र को जैन धर्म में त्रिरत्न कहते हैं । 

( ब ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए

 प्रश्न 1. स्वामी महावीर का जीवन - परिचय लिखिए । 

उत्तर - जीवन - परिचय : स्वामी महावीर जैन धर्म के 24 वें , तीर्थंकर थे । इनका जन्म 540 ई . पू . में वैशाली के निकट हुआ था । इनके पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला देवी था । इसके बचपन का नाम वर्धमान था । 30 वर्ष की उम्र में वर्धमान ने अपने बड़े भाई की आज्ञा प्राप्त कर संन्यास धारण की । 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद उन्हें ' कैवल्य ' अर्थात् सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई । कठोर तपस्या और सहनशीलता के कारण उन्हें ' महावीर कहा गया एवं इंद्रियों के विजेता होने के कारण उन्हें जिन ' भी कहा गया । इसी कारण उनके अनुयायी जैन कहलाते हैं । 72 वर्ष की आयु में 468 ई . पू . पावापुरी नामक स्थान में इनका निर्वाण हुआ । 

प्रश्न 2. जैन धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए । 

उत्तर - जैन धर्म के अनुसार , मनुष्य को अपने जीवन में ' त्रिरत्न ' ( यानी तीन रत्नों ) को प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए । ये त्रिरत्न पंचमहाव्रत ( यानी पाँच व्रतों ) के पालन करने से ही प्राप्त हो सकता है । इनका पालन करने से मनुष्य को ज्ञान तथा निर्वाण ( जन्म एवं मृत्यु से मुक्ति ) की भी प्राप्ति होती है । इन त्रिरत्नों में सम्यक ज्ञान , सम्यक दर्शन और सम्यक चरित्र है । इन त्रिरलों को प्राप्त करने के लिए जिन पाँच महाव्रतों का पालन करना जरूरी था । वे थे - सत्य , अहिंसा , अस्तेय , अपरिग्रह तथा ब्रम्हचर्य । स्वामी महावीर ने अंहिसा पर विशेष जोर दिया था । उन्होंने बुरे या कठोर वचन बोलने को भी हिंसा माना था । उन्होंने सभी मनुष्य को समान बताया ।



 प्रश्न 3. महात्मा गौतम बुद्ध का जीवन - परिचय लिखिए ।

 उत्तर - जीवन - परिचय : बौद्ध धर्म की स्थापना महात्मा गौतम बुद्ध ने की थी । महात्मा बुद्ध का जन्म 561 ई . पू . में कपिलवस्तु 

के लुम्बिनी नामक स्थान में हुआ था । इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था । गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम मायादेवी था । पिता शुद्धोधन ने 16 वर्ष की अल्प आयु में यशोधरा के साथ इसका विवाह कर दिया । कुछ वर्षों में उन्हें पुत्र रत्ल की प्राप्ति हुई । जिसका नाम राहुल था । वैभवशाली जीवन , विलास , ऐश्वर्य के साधनों से सिद्धार्थ बँध न सके और फिर एक रात्रि अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर मात्र 29 वर्ष की आयु में घर त्याग दिया । बचपन से ही सिद्धार्थ जीवन और मृत्यु जैसे विषयों पर सोचते रहते थे । वे संसार को दुखों से मुक्त करना चाहते थे । सिद्धार्थ ने ज्ञान की खोज में छ : वर्षों तक कठोर तपस्या की , उसके बाद एक पीपल के पेड़ के नीचे उन्हें सत्य का ज्ञान हुआ जिसे ' सम्बोधि ' कहा गया । उस पीपल के पेड़ को तभी से ' बोधि वृक्ष ' कहा जाता है । महात्मा गौतम बुद्ध को जिस स्थान पर बोध या ज्ञान प्राप्त हुआ , उस स्थान को बोध गया ' कहा जाता है । 80 वर्ष की आयु में 483 ई . पू . कुशीनगर में उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ ।

 प्रश्न 4. बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए । 

उत्तर - बौद्ध धर्म के अनुसार चार आर्य सत्य को हमेशा याद रखना चाहिए । ये हैं- 

( 1 ) संसार में दुख है । 

( 2 ) दु : ख का कारण तृष्णा है ।

( 3 ) तृष्णा को त्यागकर दुःख से छुटकारा पाया जा सकता है ।

 ( 4 ) सही आचरण एवं सभी बातों में मध्यम मार्ग अपनाकर दुःख पर विजय ( निर्वाण ) पाया जा सकता है । अष्टांगिक मार्ग का पालन करने से दुख दूर हो सकते हैं । ये अष्टांगिक मार्ग हैं - शुद्ध विचार , शुद्ध संकल्प , शुद्धउ वाणी , शुद्ध व्यवहार , शुद्ध जीवन , शुद्ध उपाय , शुद्ध ध्यान , शुद्ध उपाधि । इनके अलावा मनुष्य को पाँच नैतिक नियम अपनाने चाहिए । 

( 1 ) किसी प्राणी की हत्या नहीं करना ।

 ( 2 ) चोरी नहीं करना । 

( 3 ) झूठ नहीं बोलना । 

( 4 ) मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करना । 

( 5 ) व्यभिचार नहीं करना । बुद्ध ने अपने अनुयायियों को बीच का रास्ता अपनाने को कहा है अर्थात् न अधिक तप और न ही अधिक भोग - विलासिता करना चाहिए । बौद्ध धर्म के अनुसार , मनुष्य स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है । बौद्ध धर्म ने जात - पात , ऊँच - नीच के भेद - भाव तथा धार्मिक जटिलता को गलत बताया ।

 ( स ) संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए



 ( 1 ) त्रिरत्न - जैन धर्म के अनुसार , मनुष्य को अपने जीवन में त्रिरल ( यानि तीन रत्नों ) को प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए ।

इन त्रिरत्नों में पहला था - सत्य और असत्य का ज्ञान होना सम्यक - ज्ञान ) । दूसरा सच्चा ज्ञान ( सम्यक दर्शन ) और तीसरा था , अच्छा कार्य करना और गलत कार्य त्यागना ( सम्यक चरित्र ) । 

( 2 ) चार आर्य सत्य - बुद्ध ने निम्नलिखित चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया 

( 1 ) इस संसार में दु : ख है । ( दु : ख का सत्य )

 ( 2 ) इस दु : ख का कारण तृष्णा है ।

(3 ) तृष्णा को त्यागकर दु : ख से छुटकारा पाया जा सकता है ।

( 4 ) सही आचरण एवं सभी बातों में मध्य मार्ग अपनाकर दुःख पर विजय ( निर्वाण ) पाया जा सकता है ।

 ( 3 ) पंचमहाव्रत - स्वामी महावीर ने पाँच महाव्रतों का पालन करने पर जोर दिया । वे निम्नलिखित हैं 

( 1 ) सदा सत्य बोलना । ( सत्य ) 

( 2 ) मन , वचन एवं कर्म से हिंसा न करना । ( अहिंसा ) 

( 3 ) चोरी न करना । ( अस्तेय )

( 4 ) धन का संग्रह न करना । ( अपरिग्रह ) 

( 5 ) अपने इंद्रियों को वश में रखना । ( ब्रह्मचर्य ) त्रिरत्नों को प्राप्त करने के लिए इन पाँच महाव्रतों का पालन करना जरूरी था । 

( 4 ) अष्टांगिक मार्ग - गौतम बुद्ध के अनुसार , अष्टांगिक मार्ग का पालन करने से दु : ख दूर हो सकते हैं । ये अष्टांगिक मार्ग में निम्नलिखित आठ बातें सम्मिलित हैं 

( 1 ) शुद्ध विचार , 

( 2 ) शुद्ध संकल्प ,

 ( 3 ) शुद्ध वाणी , 

( 4 ) शुद्ध व्यवहार , 

( 5 ) शुद्ध जीवन , 

( 6 ) शुद्ध उपाय 

( 7 ) शुद्ध ध्यान , 

( 8 ) शुद्ध समाधि ।

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