छाते के आविष्कार की कहानी
पुराने समय में छाते का अलग ही रूप होता था । राजा - महाराजाओं के लिए बड़े - बड़े ' छत्र ' उपयोग में लाए जाते थे । प्राचीन ग्रंथों में ' छत्र ' शब्द का अनेक बार प्रयोग मिलता है । अंग्रेजी में छाते को ' अम्ब्रेला ' कहा गया है जो इटली की भाषा ' अम्ब्रेलो ' से बना है । प्राचीन युग में जो छत्र बनाए जाते थे , उनमें हीरे - जवाहरात , मोतियों और सोने - चांदी तक का उपयोग होता था । छतों का उपयोग दुनिया के अनेक देशों - चीन , यूनान , फारस , तुर्की आदि में हजारों वर्षों पूर्व से होता रहा है । इसका उल्लेख पुराने समय के भित्ति चित्रों तथा अनेक इमारतों के भीतर अंकित चित्रों से मिलता है । प्राचीन युग में छाते जैसे आकार के ' हैट ' बनते थे , जिनका उपयोग चीन में महिलाएं धूप व वर्षा से बचने के लिए करती थीं । छतों का जो रूप हम वर्तमान समय में देख रहे हैं , वह बहुत ज्यादा पुराना नहीं है । कुछ देशों में तो छाते का प्रचलन केवल दो शताब्दी पूर्व ही था। कपड़े का छाता कब और कहाँ बनाया गया था, इसके बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। यह आवश्य है कि प्राचीन काल में छतरियों का उपयोग केवल धनी लोग ही करते थे। छतरियों का उपयोग केवल शाही और शाही परिवारों में ही गर्व की निशानी माना जाता था। एक बार इंग्लैंड में जोन्स हेंथे नाम का एक व्यक्ति छाता लेकर बाहर आया जब छोटे बच्चों ने उस पर पत्थर फेंके थे क्यों कि वे उससे डर गए थे।
इसी तरह सन 72 में जब एक व्यापारी छाता लेकर वाल्टीमोर के बंदरगाह परछाता लगाकर उतरा तो भगदड़ मच गई क्यों कि लोगों ने पहली बार छाता देखा था। अठारहवीं शताब्दी तक छतरियों को ज्यादा लोकप्रियता नहीं मिली, क्योंकि उस समय छतरियों को एक फैशन उपकरण माना जाता था। सत्रहवीं शताब्दी तक छतरियों में भारी धातु की छड़ों का उपयोग किया जाता था। 1840 में, पहली बार इंग्लैण्ड निवासी सैमुअल फ़ामस ने कपड़े की छतरियों में गोल इस्पात की कमानियों इस्तेमाल किया। धीरे-धीरे छतरियों का आकार और प्रकार बदल गया। छाता बनाने के लिए आमतौर पर काले कपड़े का इस्तेमाल किया जाता था। भारत में पहला छाता निर्माण कारखाना 1902 में खोला गया था, यह कारखाना बॉम्बे में स्थापित किया गया था। अब लगभगबआठ सौ से अधिक फैक्ट्रियां काम कर रही हैं। वर्तमान में अलग-अलग आकार और प्रकार और अलग-अलग रंगों से छतरियां बनाई जा रही हैं। फोल्डिंग वाले छाते बटन दबाने पर भी काम करते हैं। "वातानुकूलित" airconditioned छतरियां आधुनिक देशों में निर्मित की गई हैं। बैटरी से चलने वाली यह छोटी छतरी अनूठी है। इसी तरह, सौर ऊर्जा से चलने वाला छाता आपको सर्दियों के दिनों में गर्माहट का एहसास कराएगा।
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