सिंधु घाटी की सभ्यता (कविता)

सिंधु घाटी की सभ्यता (कविता)



सिंधु नदी के तट पर,

जन्मी सभ्यता की प्रथम प्रणेता

सिंधु घाटी  जिसका नाम था।

भू तल पर यह दबी हुई थी ,

जिससे हर कोई अंजान था।

मोहनजोदड़ो नामक जगह पर,

रेल लाइन बिछाने का ,शुरू हो रहा  काम था,

तभी सामने आया एक  टीला,

रुका काम तमाम था।

लगे टीले को हटाने , मिली एक दीवार थी,

जिसे देखकर आश्चर्य चकित जन साधारण,

किंतु उत्सुकता आई थी ।

इसी उत्सुकता में हुई खुदाई जिसमे मिला 

पुराना एक नगर,

लोग जहां रहते थे और  करते थे

अपना  गुजर बसर।

विद्वानों ने इसे सिंधु घाटी कहा

किसी ने हड़प्पा  बुलाया  है।

और यही बच्चों पुरातन सभ्यता कहलाया था।

सन् 1921 में  दयाराम ने

हड़प्पा की खुदाई थी ,

तभी एक रहस्यमय नगरी सामने आई थी।

हड़प्पा जिसको नाम दिया।

जिसने लोगों के रहन - सहन,पहनावा,

खानपान ,कला संस्कृति का ज्ञान दिया।

मिले जहां ईंटे,मिट्टी के सामान थे।

पता चला जिससे ,इनके पक्के मकान थे।

सिंधुघाटी की विशेषता ,उनकी नगर योजना थी

जो की सुनियोजित ढंग से ग्रीड के क्रम में बनी थी।

पूरा नगर दो भागों में बंटा था

एक भाग ऊपर था,जिसके चारों 

ओर सुरक्षा हेतु परकोटा बना था।।

और निचले हिस्से में सामान्य जन बसते थे।

इसलिए इसमें घर कुछ घने थे।

थी जिसकी सड़कें पक्की,

घर दोनों ओर बनाया था।

जल निकासी की खातिर , 

नालियों का जाल बिछाया था।

मोहनजोदड़ो भी था, 

इस सभ्यता का प्रमुख नगर

मिली जहां विशाल स्नानागार,

और  अन्न घर। 

करते जो लोग यहां शासन

वे कहलाते थे राजा और राजन।

कृषि और पशुपालन इनका प्रमुख काम था,

उगाते थे ये खेतों में गेंहू, जौ,कपास, तिल 

पर तांबा, रांगा, शीशा और पीतल 

का भी इन्हे ज्ञान था।

कीमती पत्थरों और हड्डियों से  

ये आभूषण बनाते थे,

दैनिक जीवन में जिसे ये 

उपयोग में लाते थे।

शिल्प कलाओं में भी 

जो इतने थे माहिर,

खनन से मिली मुद्रा,स्मारक, 

और मनका कर रही इस बात को जाहिर।

लोथल उनका  प्रमुख बंदरगाह ,

 होता था व्यापार जहां,

और कीमती पत्थरों,कपास ,सोना,तांबे के

औजारों का आयात और निर्यात वहां।

इस सभ्यता में खाते थे ये मांस,मछली,गेंहू और जौ,

पर धार्मिक भी थे इतने की पूजते थे गौ।

नाच - गान और पासों  के 

खेलों से ये जी बहलाते,

कीमती पत्थरों और हड्डियों के आभूषण से,

अपने को सजाते ।

मातृदेवी और पीपल इनके थे प्रमुख देव।

पूजते  थे ये तीन मुख वाले को 

जो कहलाते महादेव  ।

भाव प्रकट करने हेतु,

चित्र लिपि का भी उनको था ज्ञान ।

कथन को लिपिबद्ध करें कैसे 

इसका भी था इनको भान।

अंत कहें या पतन कहें हुआ

कैसे न हुआ किसी को ज्ञात।

थी आक्रोश प्रकृति की या हुई धरा में 

उथल पुथल या दिया किसी ने उनको मात।

स्वरचित अर्चना शर्मा शिक्षिका

 कुंवर भुवन भास्कर सिंह बालक 

पूर्व माध्यमिक शाला  अकलतरा

02/09/2024


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