पाठ 8 एक सांस आजादी के – डॉ. जीवन यदु
शब्दार्थ–जुड़ा = बैलगाड़ी का जुड़ा, जोहारे = प्रणाम करे, उसलथे = उठ जाते है, चिन्हारी = पहचान, चेथी = गर्दन के पीछे का भाग, घोलंड के = लोटकर, एकोकनी = तनिक भी, कोठा = गौशाला, सोनहा = सुनहरा, माढ़े = रखा हुआ, गोड़ = पैर ।
प्रमुख पद्यांशों की व्याख्या
1. जीयत-जागत मनखे बर जे धरम बरोबर होथे। एक सांस आज़ादी के, सौ जन्म बरोबर होथे। जेकर चेथी म जुदा कस माड़े रथे गुलामी, जेन जोहारे बैरी मन ल, नागासांड के लामालमी। नाव ले जादा, जग म ओकर होथे ग बदनामी, अइसन मनखे के जिनगी बेसरम बरोबर होथे॥
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी भारती के पाठ 8 “एक साँस आजादी के" नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि डॉ. जीवनजी यदु हैं।
प्रसंग- इस पद्यांश में कवि ने आजादी के महत्व पर प्रकाश डाला है।
अर्थ - जीते-जागते (विवेकशील) मनुष्य के लिए आजादी धर्म के समान होती है। स्वतंत्रता की एक साँस भी, सौ जन्मों में जीने के बराबर होती है। जिसकी गर्दन में गुलामी बैलगाड़ी के जुड़ा के समान पड़ी रहती है, अर्थात् जो गुलाम होता है, जो शत्रु को जमीन में लोटकर (दण्डवत्) प्रमाण करता है, उसके नाम से ज्यादा बदनामी होती है। इस तरह के मनुष्य की जिन्दगी बेशर्म तुल्य होती है।
2. लहू के नदियाँ तउँर निकलथे, बीर ह जतके बेरा, सुरुज निकलधे मेंट के करिया, बादरवाला घेरा, उजियार ले तभे उसलथे, अँधियारी के डेरा, सबे परानी बर आजादी करम बरोबर होथे।
शब्दार्थ - लहू - रक्त, खून। तउर निकलथे = पार कर जाता है। जतके बेरा = जितने समय में। सुरुज सूर्य । करिया = काला। बादर = बादल। उसलथे उठ जाते हैं, समेटने लगता है। परानी = प्राणी।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी भारती के पाठ 8 “एक साँस आजादी के" नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि डॉ. जीवनजी यदु हैं।
प्रसंग- इस पद्यांश में कवि ने आजादी के महत्व पर प्रकाश डाला है।
अर्थ - जिस समय वीर खून की नदी को पार कर लेता है। सूरज काले बादलों के घेरे को तोड़कर बाहर निकलता है। उजाले के लिए अंधकार अपना डेरा समेटने लगता है। आजादी सभी प्राणियों के लिए कर्म के समान होती है अर्थात् आजादी हमें काम करना सिखाती है।
3. जेला नई हे आजादी के एकोनी चिन्हारी, पर के कोठा के बदला मन चारथे ओकर बारी, आजादी के बासी आगू बिरथा सोनहा थारी, बेटे के पिंजरा म आजादी भरम बरोबर होथे।
शब्दार्थ - जेला = जिसे, जिसको। नइहे नहीं है। एकोकनी = थोड़ी भी। चिन्हारी जानकारी, परिचय, ज्ञान। बइला = बैल । चरथे = चरते हैं। आगू के समान, के समक्ष । बिरथा = व्यर्थ । सोनहा = सोने की। थारी थाली। भरम = भ्रम ।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी भारती के पाठ 8 “एक साँस आजादी के" नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि डॉ. जीवनजी यदु हैं।
प्रसंग - आजादी के बासी भोजन के समक्ष गुलामी के सोने की थाली में परोसे विविध व्यंजन भी व्यर्थ होते हैं, यही कवि ने इस पद्यांश में बताया है।
अर्थ - कवि कहते हैं कि जिसे थोड़ा भी आजादी के महत्व का ज्ञान (जानकारी) नहीं है। उसकी बाड़ी को दूसरे के कोठे के बैल चरते हैं अर्थात् उसका फायदा दूसरे लोग उठाते हैं। आजादी के जीवन में बासी भोजन के समक्ष विविध व्यंजनों से भरी हुई सुनहली थाली भी व्यर्थ होती है। सोने के पिंजरे में भी आजादी भ्रम के समान होती है अर्थात् सोने के पिंजरे में भी गुलामी का जीवन अच्छा नहीं होता है।
4. माढ़े पानी ह नइ गावय खलबल खलबल गाना बिना नहर उपजाय न बाँधा खेत म एको दाना, अपन गोड़ के बँधना छोरय, ओला मिलय ठिकाना, आजादी ह सब विकास के मरम बरोबर होथे।
शब्दार्थ - माड़ेपानी = स्थिर पानी। उपजाय = पैदा किया जा सकता है। अपन = अपने। गोड़ = पैर । बँधना = बंधन । छोरय = छोड़ना, तोड़ना। ओला = उसको। ठिकाना = आश्रय, मंजिल । मरम = मर्म, सार।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिन्दी भारती के पाठ 8 “एक साँस आजादी के" नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि डॉ. जीवनजी यदु हैं।
प्रसंग - कवि ने इस पद्यांश में आजादी ही विकास का मूल है यह बताया है।
अर्थ- कवि कहते हैं स्थिर पानी खलबल खलबल गीत नहीं गाता है, अर्थात् स्थिर पानी में खलबल खलबल की ध्वनि नहीं निकलती। बिना नहर बाँध से एक भी दाना अनाज नहीं उत्पन्न किया जा सकता, अर्थात् खेत में नहर के पानी बगैर अन्न पैदा नहीं किया जा सकता। जो अपने पैरों को बंधन मुक्त करता है, वही अपनी मंजिल को प्राप्त करता है, अर्थात् आजादी के द्वारा वह अपने लक्ष्य को पा सकता है। आजादी ही सभी विकास का मर्म (मूल) है।
प्रश्न अउ अभ्यास
प्रश्न 1. आज़ादी की एक सांस ह काकर बरोबर होथे?
उत्तर - आजादी के एक साँस ह सौ जनम के बरोबर होथे।
प्रश्न 2. अंधियारी के डेरा कब उसलथे ?
उत्तर - जब सुरुज ह निकलथे, तब अँधियार ह अपन डेरा ल सकेलन लगथे।
प्रश्न 3. माढ़े पानी ह नइ गावय खलबल खलबल गाना, कवि के अइसे कहे के मतलब का हे ?
उत्तर - माड़े पानी ह नई गावय खलबल खलबल गाना एखर यह मतलब है कि माड़े पानी में खलबल खलबल के आवाज नई आवे. गुलामी ह हर रोज रस्ता रोक देथे।
प्रश्न 4. "लहू के तरिया ल तूंर" के बारे में जानें?
उत्तर-लहू के तरिया ल तऊँर के बीर ह निकलथे ।
प्रश्न 5. दुनिया में कौन मनखे के अपवित्र होथे?
उत्तर- जेन बइरी मन ला जोहारे, घोलंड के ओला
लामालामी परणाम करै। अइसने मनखे के संसार में बदनामी होथे।
प्रश्न 6. कवि ह आज़ादी ल जम्मो विकास के बारे में काबर कहे हे?
उत्तर- कवि ह आजादी ल जम्मो विकास के जर इही खातिर कहे हे कि बिना नहर के खेत म एको दाना नई उपजे। जेन मनखे अपन भगवान के बंधना ला चोरथे, उही ल ओकर विशेषज्ञ मिलथे।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. आज़ादी ह सब मनखे बर करम बरोबर आय ये बात ल फ़ियार के लिखव? चर्चा करव।
उत्तर- जिनगी म अपन जाति, समाज, देश के विकास के खातिर आजादी के बड़ महत्व है। सब मनखे आजादी के हवा म साँस लेवइ ल पसंद करथे। गुलामी के बरा सोहांरी ले आजादी के सुक्खा रोटी ह ज्यादा गुरतुर लागथे। आजादी ह सब विकास के मर्म बरोबर होथे।
प्रश्न 2. आज़ादी के लइय म कतको झन ल फाँसी हो गिस। कतको ल जेल म छोड़ दे गिस, खोज केव लइका कतका झन के नाव ल तुमन जान पाव जेन मन ल अंग्रेज मन फाँसी उ जेल के सजा दिस। ऐसे दोस्त बनाये के लिक्स।
उत्तर-
फाँसी के सजा पाइन जेल के सजा पाइन
1. शहीद भगत सिंह 1. महात्मा गाँधी
2. मंगल पाण्डे 2. नेता सुभाष चन्द्र बोस
3. चन्द्रशेखर आजाद 3. सरदार वल्लभ भाई पटेल ।
भाषा से
प्रश्न 2. छत्तीसगढ़ी के 'होथे' शब्द के खड़ी बोली म अर्थ हे - 'होता है।' भूतकाल अउ' भविष्य' काल के रूप लिखव ।
उत्तर- 'होथे' शब्द के भूतकाल - होगे हे और भविष्य काल - होही।
3. 'जेकर' चेथी म वास्तु कस मादे रथे गुलामी।' एमा कहे कस शब्द ल जोड़ के तीन ठन वाक्य लिव।
उत्तर- 1. परसराम अपराधी कस खड़े रहिस।
2. मोर बहिनी ह मोर कस दिखथे।
3. ऐ सिक्का ह सोना कस लागथे।
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