"बोलेगा बचपन" छात्रों में अभिव्यक्ति कौशल का विकास "समस्या या हल "

"बोलेगा बचपन"  छात्रों में अभिव्यक्ति कौशल  का  विकास "समस्या या हल "

अभिव्यक्ति कौशल विकास के हेतु तैयार की गई विषयवस्तु में शुद्धता, स्वाभाविकता, स्पष्टता, विचार क्रमबद्धता, सशक्तता एवं सहजता जैसे गुणों का होना आवश्यक है । कक्षा  में संकोची, झेंपू, भयातुर बच्चों के विकास के लिए अलग से अभिनव प्रयोगों से युक्त उपचारात्मक कार्यक्रम के एक सशक्त माध्यम के रूप में जांजगीर कलेक्टर श्री आकाश छिकारा जी द्वारा"  बोलेगा बचपन"जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य एकमात्र छात्रों के भय और झेंप को दूर कर अपनी भावनाओं को सरल माध्यम से बता पाना है। इसके अंतर्गत शिक्षकों को जिम्मेदारी दी गई है की  भाषण कौशल के विकास हेतु छात्रों में आत्मविश्वास की भावना विकसित करें  तथा उसके संकोच को समाप्त करने हेतु कारगर साधन का उपयोग करें । शिक्षको द्वारा  छात्रों के भाषण को सकारात्मक रूप में स्वीकार करना चाहिए तथा उनकी त्रुटियों को दूर करने में आत्मीय व्यवहार का सहारा लेना चाहिए|जिससे छात्र अपनी त्रुटियों में सुधार की ओर निरंतर अग्रसर हो,उनकी झिझक दूर होकर उसके स्थान पर आत्मविश्वास का संचार कर  उनमें सकारात्मक बदलाव लाया जाना संभव हो सके। जिससे  उक्त कार्यक्रम  (बोलेगा बचपन) के उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके।  किंतु समस्या यहीं से प्रारंभ होती है  की अगर प्रारंभिक स्तर ( कक्षा 1से 5 तक) की बात की जाए तो बच्चों द्वारा  कविता  पाठ करवा कर या अपना केवल नाम बोलवाकर  कुछ शिक्षक अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लें रहें है। यहीं पर अगर माध्यमिक शालाओं की बात करूं तो  बहुत से माध्यमिक शालाओं में छात्र  सामने आ कर कुछ भी बोल पाने में असमर्थ हो रहें है ऐसी दशा में  शिक्षक अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पाने के लिए उसे पहले दिन ही कुछ सूक्तियां  ,कुछ विचार और महापुरुषों के वचन रटवाने की कोशिश कर रहा होता है पर अगले दिन वह शिक्षक अपने द्वारा किए गए  पूर्व प्रयास में असफल होता हुआ दिखाई देता है क्यों की छात्र गलती की संभावनाओं से भयातुर हो कर बोलने से  बचना चाहता है।
अब मेरा प्रश्न यह है की क्या इस तरह रटंत पद्धति के आश्रय से जो कहीं न कहीं  निष्फल भी रहा से "बोलेगा बचपन "के  महान उद्देश्य की प्राप्ति हो सकेगी। क्यों की जो रटवाया गया  वह तो उस छात्र के अंतर्मन की आवाज थी ही नहीं । उसे तो इस बात का भी ज्ञान  न होना भी संभव हो सकता है की जिस महापुरुष के वचन वह बोल रहा है वह कौन थे? यह भी संभव है की जो विचार वह रट कर बोल रहा है वास्तव में  उसका अभिप्राय क्या है ?
 ऐसी दशा में क्या किया जाए की छात्रों की वास्तविक भावनाओं  की अभिव्यक्ति संभव हो जिसमें कोई झोल न हो जो उनकी स्वयं के अंतर्मन की आवाज हो  और वह जान सके की उसे  इसे अभिव्यक्त कैसे करना है।
क्या यह संभव है की हम छात्रों के कक्षा गत स्तर को ध्यान में न रखकर केवल उनके मानसिक और बौद्धिक स्तर को ध्यान में रखकर उन्हें  बोलने का अवसर प्रदान करें जो उनके व्यक्तिगत जीवन ,उनकी दिनचर्या से भी संबंधित हो जो उनसे जुड़ी बातें होने के कारण इस तरह के सतत अभ्यास से उनकी झिझक दूर हो कर  "बोलेगा बचपन " के वास्तविक उद्देश्य की प्राप्ति हो सके ।


 मैं इस  संबंध में आंखों देखा हाल भी बताना चाहूंगी  की एक माध्यमिक शाला में जहां एक भी छात्र कुछ भी बोलने से घबराता है एक शिक्षक यह कोशिश करते हुए दिखा की  छात्र कुछ बोलें  और सतत अभ्यास से  उस लक्ष्य की प्राप्ति हो जो वास्तव में हम प्राप्त करना चाहते हैं और सभी छात्रों को क्रमशः बोलने हेतु प्रेरित किया और यह देखा गया  छात्र इस तरह से अपनी दिनचर्या से संबंधित बातें बोल रहे थे  किंतु एक शिक्षक  द्वारा उन्हें ज़ोर - जोर से मार व डांट कर डराते  हुए यह कहा जा रहा था की यह बात उनके कक्षा के अनुरूप नहीं है और उन्हें यह नहीं बोलना चाहिए । इस तरह बच्चों को बिगाड़ा जा रहा है और इस दिशा में प्रयास कर रहे शिक्षक को  अपशब्द बोल कर उसके  उत्साह को कम करने की कोशिश की जा रही थी । 
अब यहां महत्वपूर्ण प्रश्न यह उभरता है कि क्या ऐसी दशा में  कोई भी छात्र कुछ बोलने हेतु प्रेरित होंगा ? क्या यह एक ऐसी अवस्था नहीं है  जो छात्रों  को डराने मात्र के लिए पर्याप्त है। 
मैं आप लोगों से जानना चाहती हूं की क्या उस शिक्षक को गलत बोला जा सकता है जिसकी मंशा केवल छात्रों को बोलने का अभ्यास करवाना  मात्र था  उन बातों के माध्यम से जिसे छात्रों ने खुद जिया था जिसे वह अच्छी तरह बोल पा रहे थे, बिना डर के। क्या इस तरह अभ्यास करते - करते वह समय नहीं लाया जा सकता था,  जब छात्र  स्वयं से बढ़ - चढ़कर किसी  वादविवाद का हिस्सा बन सकते थे ।क्योंकि कहा भी तो गया है" करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान" । मेरे विचार से वह प्रत्येक कार्य सराहनीय कहा जायेगा जिसका उद्देश्य शून्य से अनंत को प्राप्त करना होगा। इस तरह प्रयास से ही छात्रों द्वारा अभिव्यक्त विषयवस्तु में सुद्धता,स्वाभाविकता और विचारों में क्रमबद्धता का समावेश संभव हो सकेगा।
इस संदर्भ में आपके क्या विचार है ? कृपया कॉमेंट में बताएं🙏🙏

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