आधुनिक काल के साहित्य सर्जन के उत्तरदायी परिस्थितियां

आधुनिक काल के  साहित्य  सर्जन के उत्तरदायी परिस्थितियां



 सामान्य परिचय

हिंदी साहित्य का काल विभाजन करते हुए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उसे चार भागों में बांटा है-

आदिकाल (वीरगाथा काल)

1050 – 1375 

पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल)

1375 – 1700 

उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल)

1700 –1900 

आधुनिक काल (गद्यकाल)

1900 –

आचार्य शुक्ल ने दो आधारों पर यह विभाजन प्रस्तुत किया है पहला ऐतिहासिक विकास का आधार तथा दूसरा प्रवृत्तिगत आधार। इस विभाजन के पीछे शुक्लजी का विशेष ध्यान संबंधित काल की प्रमुख विशेषताओं की ओर रहा है। जिस प्रवृत्ति की अधिकता जिस काल में रही, पही उनके नामकरण और विवेचन का आधार बनी। इस दृष्टि से उन्होंने आधुनिक काल को प्रवृत्ति के आधार पर गद्यकाल की संज्ञा दी। हालांकि आधुनिक काल में मात्रात्मक एवं गुणवत्ता दोनों दृष्टियों से काव्य का सर्जन भी बहुत अधिक हुआ है, पर शुक्लजी ने उसे प्रवृत्ति विशेष के आधार पर गद्यकाल कहा। इसके पीछे शुक्ल जी का आग्रह गद्य की उस नवीन प्रवृत्ति के प्रति है जो आधुनिक काल की सबसे प्रमुख घटना है। गद्य पद्य दोनों का माध्यम खड़ीबोली होना आधुनिक काल की अतिमहत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यही कारण है कि शुक्लजी का ध्यान इस अति महत्त्वपूर्ण साहित्यिक घटना की ओर विशेष रूप से गया और उन्होंने उसे आधुनिक काल की प्रवृत्ति मानकर उसका नामकरण गद्यकाल के रूप में किया। आधुनिक काल हिंदी गद्य के आरंभ और उसके विकास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। ब्रजभाषा में श्रृंगारपरक काव्य रचना की जो समृद्ध परंपरा चली आ रही थी, उसमें उससे और अधिक आगे जाने की गुंजाइश नहीं थी। इसके लिए न तो वातावरण ही अनुकल था और न तत्कालीन परिस्थितियों में ऐसा किया जाना संभव था। हालांकि आधुनिककाल के वातावरण और परिवेश दोनों में परिवर्तन हो चुका था, पर रीतिकालीन कविता का संस्कार पूरी तरह छूट जाए, यह कठिन था। यही कारण है कि नवीनता की बयार बहने के बावजूद श्रृंगारिक काव्य रचना का दौर भी चलता रहा और नूतन काव्य काव्य प्रवृत्तियां भी दस्तक देती रहीं। परंपरागत काव्य रचना एवं नवीन भावसंवलित काव्य सर्जन के इसी मिलन बिंदु से आधुनिक काल का अभ्युदय हुआ, जिसके लिए तत्कालीन परिस्थितियां पूरी तरह से उत्तरदायी कही जा सकती है। आधुनिक कालीन काव्य का विवेचन करने के क्रम में उस काल की विभिन्न परिस्थितियों का उल्लेख करना समीचीन होगा।

 आधुनिक काल के काव्य की परिस्थितियां

आधुनिक काल में गद्य और पद्य दोनों की अभिव्यक्ति का माध्यम खडीबौली होना इस काल की उल्लेखनीय उपलब्धि है। काव्य, जो अब तक ब्रजभाषा में लिखा जा रहा था, आधुनिक काल में उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम खडीबोली हो गई। गद्य की भाषा भी खड़ीबोली हिंदी हो जाने से अभिव्यक्ति का अनुकूल एवं प्रभावी परिवेश निर्मित हुआ। खड़ीबोली के कारण आधुनिक काल की साहित्य रचना में क्रांतिकारी परिवर्तन उपस्थित हुआ।

हिंदी काव्य की जो धारा पूर्ववर्ती काल से प्रवाहित होती चली आ रही थी, आधुनिक काल में आकर उसका स्वर पूरी तरह बदल गया। हालांकि परंपरागत काव्य रचना को भी यकायक बंद कर दिया जाना संभव नहीं था, पर यह बात विशेष तौर पर उल्लेखनीय है कि इस समय विविध प्रकार की नवीन प्रवृत्तियों का अभ्युदय हो रहा था। विज्ञान का युग होने के कारण इसकाल में बौद्धिकता एवं यांत्रिकता का होना स्वाभाविक ही था। इसके साथ ही राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिस्थितियों में भी विविधता दिखाई देने लगी थी। क्रमिक रूप से चली आ रही पूर्व की साहित्यिक परिस्थितियों एवं प्रवृतियों में भी परिवर्तन एवं अंतर दृष्टिगत होने लगा था। वस्तुतः सम्पूर्ण समाज में एक आमूल परिवर्तन की अनुगूंज सुनाई देने लगी थी। इसी परिवर्तन की पीठिका पर भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने हिंदी कविता को श्रृंगारिक परिवेश से निकाल कर उसे नूत्न प्रवृत्तियों और भावभंगिमाओं से संवलित करने का स्तुत्य कार्य किया। आधुनिक काल के प्रवर्तन का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को दिया जाता है। यह समय देशीय एवं विदेशी सभ्यता की संधि का समय है, जिसमें विविध नवीन प्रवृत्तियां धीरे-धीरे करवट ले रही थीं।

आधुनिक काल में राष्ट्रीयता, समाज सुधार, देशप्रेम, जनजागरण, विदेशी शक्तियों के प्रति तीव्र आक्रोश, शोषण तथा अत्याचार के विरुद्ध जनाक्रोश की भावना आदि प्रवृत्तियां तत्कालीन परिस्थितियों में प्रमुखता से प्रकट हो रही थीं। आधुनिक काल से पूर्व के समय पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट होगा कि वह पूरी तरह से संघर्ष का काल था। हालांकि मुस्लिम शासक आक्रमणकारी बनकर भारत में आए थे, पर इस समय तक वे यहां की सम्यता और संस्कृति में रचबस गए थे तथा वे पूरी तरह भारतीय हो गए थे। जब अंगरेजों से लड़ाई आरंभ हुई तो उनके विरुद्ध हिंदू- मुसलमान दोनों साथ साथ मिलकर लोहा ले रहे थे। स्वतंत्रता संघर्ष की पहली लड़ाई तत्कालीन शासक बहादुरशाह जफर के नेतृत्व में ही आरंभ हुई थी। उन्होंने 'पयामें आजादी नामक समाचार पत्र द्वारा हिंदू - मुसलमान दोनों को संदेश दिया - हिंदुस्तान के के हिंदु हिंदुओं और मुसलमानो ! उठो, भाइयो उठो, खुदा ने इंसान को जितनी बरकतें अता की है, उनमें सबसे कीमती बरकत आजादी है।" अंगरेजों से लोहा लेने के लिए हिंदू मुसलमानों का एक हो जाना इस काल की महत्त्वपूर्ण घटना थी। उधर कांग्रेस की स्थापना तथा दिनोंदिन बढ़ती हुई उसकी लोकप्रियता ने एकता की भावना को और भी अधिक बल प्रदान किया। उस काल में काव्य में इसकी स्वाभाविक अभिव्यक्ति दिखाई देती है। भारतेंदु और द्विवेदीयुग में राष्ट्रीयता, देशप्रेम, जनजागरण और हिंदू मुसलमान एकता का जो स्वर सुनाई देता है, वह उसी एकता भावना का परिणाम कहा जा सकता है।

भारतीय-अंग्रेज  संघर्ष की राजनैतिक दृष्टि से झकझोर देनेवाली एक और प्रमुख घटना थी। प्रथम विश्वयुद्ध। अंग्रेजों की कूटनीति ने भारतीयों को चौंकाया ही नहीं सजग और सम्बद्ध भी कर दिया था, भारतीयता की भावना को विकसित वर्धित करने के लिए अतीत प्रेम से लेकर समाज सुधार तक सभी पर बल देना इस युग में स्वभाविक ही था। कुछ आलोचक इसका श्रेय अंगरेजों को देते है, जबकि सच यह है कि इसके लिए हम अंगरेजों के कृतज्ञ नहीं उनकी कूटनीति के कृतज्ञ हों तो हों। भारतीय नेताओं और समाज सुधारकों द्वारा संचालित अनेक प्रकार के समाज सुधारात्मक आंदोलन, समन्वयपूर्वक नीतियां, देशप्रेम, राष्ट्रप्रेम, जातिप्रेम आदि की प्रवृत्तियां प्रमुखतया इन्हीं राजनैतिक परिस्थितियों की देन थीं।

प्रथम विश्वयुद्ध की विफलता और अंगरेजों के बढ़ते हुए अत्याचारों ने भारतीयों विशेषतः युवा वर्ग को निराश कर दिया। एक ओर इसी का परिणाम, अर्थात पलायन प्रवृत्ति छायावादी काव्य में प्रस्फुटित हुयी, तो दूसरी ओर हिंसात्मक आक्रोश और देशप्रेम राष्ट्रीयतावाली काव्यधारा में, जिसकी एक दिशा प्रगतिवाद के नाम से जानी जाती है। राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीयता, मानव से मानवतावाद, पूंजीवाद से व्यक्तिवाद और समाजवाद, उपदेश मेरे आदर्श से कटु यथार्थ, उच्चवर्ग से निम्नवर्ग और परंपराओं के विरोध से नवमान्यताओं की प्रतिष्ठा तक इसी राजनीतिक चेतना की देन है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद तक का हिंदी काव्य इन्हीं से ओत-प्रोत रहा। सन् 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ। संघर्ष काल खत्म हुआ और नवनिर्माण का श्रीगणेश हुआ। सहअस्तित्व, पंचशील, मानवताबाद, अंतरराष्ट्रीयता आदि की स्थापना की गई। इन सबके बावजूद जमीनी हकीकत ने भारतीय चेतना को यथार्थ की ओर उन्मुख किया। इस समय तक संषर्घकालीन आदर्श किताबी बन गए तो सत्य और अहिंसा के स्वर शोस्बुल बनकर प्रकट होने लगे थे। भारत विभाजन और पाकिस्तान के उदय ने तो मानो क्षणमात्र में भारतीय चेतता को यथार्थ की चट्टान पर ला पटका। स्वतंत्रता के रूप में भारतीयों को मिले हथकंडे बाज, चुनाव, दिनप्रतिदिन की बढ़ती कमरतोड़ महंगाई, भाई-भतीजावाद और सर्वव्यापी सर्वग्रासी भ्रष्टाचार। गत पांच-छः दशकों का भारत इसी का प्रमाण है। सच तो यह है कि इस समय का (भारतीय जनता) बुद्धिजीवी वर्ग और साहित्यकार का मानस सतत् रूप से संषर्घ, बेचैनी, अस्थिरता, संशय, संकल्प, विकल्प, नैराश्य, विक्षोभ, पलायन, अलगाव, संत्रास आदि की परिस्थितियों से गुजरता जा रहा है। परिणामस्वरूप आधुनिक साहित्य में कविता में भी विषय और शैलियों के नित नए प्रयोगों की अटूट श्रृंखला दृष्टिगोचर होती है। प्रयोगवाद और नई कविता के दिनप्रतिदिन बदलते हुए नए-नए प्रयोग इसी की देन है।

 सामाजिक परिस्थिति

अंग्रेजों  के भारत में प्रवेश करने और धीरे धीरे भारतीय जनजीवन के अधिक संपर्क में आने के फलस्वरूप उसने भारतीय समाज और जनमानस को अत्यधिक गहराई तक प्रभावित किया। यह प्रभाव अनुकूल भी था और प्रतिकूल भी। आंग्ल समाज के सक्रिय प्रयास नए-नए आविष्कार और विचारधारा एवं एवं आधुनिकता की निरंतर बढ़ती हुई चेतना अनुकूल प्रभाव के परिचायक है, तो राष्ट्रप्रेम स्माज सुधार परंपरागत कुरीतियों और रीति - रिवाजों का विरोध आदि प्रतिकूल (प्रतिक्रियात्मक) प्रभावों के साक्षी है। आंग्ल संपर्क ने एक ओर तो भारतीय मानस को सजग सक्रिय किया और दूसरी ओर, अपने अच्छे बुरे क्रिया कलापों से, एक नए वातावरण को जन्म दिया। इस वातावरण की नवीनता (वैज्ञानिक आविष्कार और अंग्रेजी शिक्षा एवं संस्कृति के प्रसार) से आधुनिकता की चेतना उत्पन्न हुई और युगों युगों से चली आ रही सामाजिक नीति, आचार विचार, आस्था और विश्वास में परिवर्तन हुए। इनमें से अधिकांश आत्महीनता की भावना से पीडित थे। इसीलिए उनके द्वारा पाश्चात्य जीवन प्रणाली का खूब अनुकरण हुआ। भास्त के स्वतंत्रता संग्राम में यह वर्ग स्वार्थवश सक्रिय रहा और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात वास्तविक सत्ता इसी अफसरशाही वर्ग के हाथ में आई। आज भी यही वर्ग सर्वाधिक शक्तिशाली किंतु कुंठित और मानसिक गुलामी से ग्रस्त है।

 अग्रेजों ने भारत का सिर्फ शोषण ही नहीं किया था अपितु अनेक वैज्ञानिक आविष्कार भी वे ही लेकर आ गए थे। भारतीय समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने में वे निरंतर सक्रिय रहे थे तथा उन्होंने ही अनेक बौद्धिकवाद और विचार प्रदान किए थे। उन्होंने भारतीय समाज को मोह, निद्रा से जगाया ही नहीं झकझोर, कर उठाया भी था। इसी क्रिया प्रतिक्रिया के फलस्वरूप भारतीयों में नई चेतना का संचार हुआ। रामकृष्ण परमहंस, राजाराममोहनराय (ब्रह्मसमाज), दयानंद सरस्वती (आर्य समाज), विवेकानन्द, महर्षि अरविंद जैसी अनेक विभूतियों ने भारतीय समाज में आमूल चूल क्रांतिकारी परिवर्तन किए। निःसंदेह इन सब का एक सशक्त माध्यम आधुनिक काव्य भी बना। भास्तेंदुयुगीन काव्य का राष्ट्रीय राज्य प्रेम, देशभक्ति और भारतीय दुर्दशा का अंकन, द्विवेदी युगीन काव्य में समाज सुधार और स्वदेश महत्ता की प्रबलता छायावादी बौद्धिकता और प्रगति, प्रयोगवादी यथार्थक्रियता सब इसी की देन हैं। स्वातन्त्र्योत्तर भारतीय समाज और प्रबुद्ध चेतना के मूलाधार उपर्युक्त तत्त्व ही है। काव्य में मानव जीवन का अधिकाधिक यथार्थ और सूक्ष्म अंकन, व्यक्ति मानस का विश्लेषण, आम आदमी, वर्ग या समुदाय का अंकन, नित नए-नए प्रयोग तथा बेलगाम व्यवस्था के प्रति फटते हुए क्रूर कठोर स्वर आदि भी मूलतः आज की सामाजिक स्थिति और उससे बढ़ते-फूटते विस्फोटों की ही देन है।

 धार्मिक परिस्थितियां

आंग्लसंपर्क का प्रभाव था धार्मिक उदारता, जिसने तत्कालीन भारतीय समाज (हिन्दू और मुसलमान समाज दोनों) में क्रांतिकारी परिवर्तन कर दिए थे। निस्संदेह मध्ययुगीन कट्टर नियमों में बद्ध और सीमित धार्मिक मनीषा ने पर्याप्त समय तक इसका विरोध भी किया, किन्तु वे अधिक समय तक विरोधी भाव को टिका न सके। इस विवेच्य युग में सत्तासंपन्न आंग्ल शासकों की छत्रछाया में भारत में इसाई धर्म को तेजी से फैलाया गया। धर्माध - सांप्रदायिक कटघरों में बद्ध भारतीय समाज में यह लाभप्रद तो था, किन्तु सरल नहीं। अतएव अंग्रेजों की "फूट डालो और राज करो" की कुटिल नीति राजनैतिक स्तर पर सफल हो जाने पर भी धार्मिक दृष्टि से सफल न हो सकी।

आंग्ल नीति के विरोध में शीघ्र ही भारतीय समाज में खलबली मचने लगी। भारतीय धर्म की नयी बौद्धिक व्याख्या ने नए-नए विचारों तथा सक्रिय मनीषियों ने अधिकाधिक समयानुकूल व्यावहारिक और सच्चे अर्थों में ग्राह्य रूप प्रदान कर दिया। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन इसी की देन थे। इन्हीं के बिचारों से प्रभावित परिचालित हिंदी काव्य में धार्मिक नवोत्थान, मानव प्रेम, नर - नारी समानता, धार्मिक विरोध आदि भी इनसे ही मिले। 

 आर्थिक परिस्थितियां

अंग्रेज व्यापारी थे। सोने की चिड़िया (भारत) के स्वर्ण पंखों को काटनेवाले पूर्ववर्ती आक्रांताओं की भांति उन्होंने भारत को लूटा कम और अपने व्यापार कौशल से कब्जाया अधिको ईस्ट इंडिया कंपनी से प्रारंभ किया गया उनका व्यापार, व्यवहार रबड़ की तरह फैलता ही चला गया। परिणामत एक ओर तो भारतीय परंपरागत उद्योग धंधे ठंडे पड़ते गए और दूसरी ओर भारतीय सभ्यता इंग्लैण्ड जाती रही। औद्योगिक गिरावट भारतीय जनसाधारण को और भी गिराती चली गई। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने इसी स्थिति पर रोष प्रकट किया था।

"अंग्रेज राज सुख साज सबे सुखकारी। पर धन विदेश चलि जाते, इहै अति ख्वारी ।।"

निर्धनता, अकाल, टैक्स और महंगाई इस युग की सामान्य आर्थिक कठनाइयां થી। महायुद्ध ને इसे और भी परवान पर चढ़ाया। इधर भारतीयों ने 'स्वदेश और स्वदेशी' के नाम पर भारतीय उद्योगों को बढ़ाने का प्रयास किया, तो साथ ही विदेशी बहिष्कार की आवाज भी उठायी। इधर अंग्रेजों की कूटनीति ने भारतीय उद्योगों और कृषि आदि को पनपने से रोका, पूंजीपतियों और जमींदारों ने इसमें भरपूर सहयोग दिया। विवश भारतीय समाज में एक वर्ग का उदय नौकरीपेशा के रूप में हुआ। कुछ ही समय में इसने भी बेकारी, निराशा और दरिद्रता आदि को आसमान पर पहुंचा दिया। वर्ग संघर्ष बढ़े तो दलित वर्ग कुचला गया और नौकरशाही पनपती गई। परिणाम ? द्वितीय महायुद्ध के पश्चात विद्रोह और प्रतिहिंसा की भावनाओं का उदय, यथार्थप्रियता की बढ़ोतरी और समाजवादी व्यवस्था पर जोर देने जैसे कामों में भारतीयों की प्रतिक्रिया में प्रकट हुयी। परिवर्तन के नये नये लक्षण प्रकट हुए - स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात यद्यपि अभी तक इनसे भी कोई विशेष उल्लेखनीय सफलता नहीं मिल सकी है। कागजी आंकडों और नेताओं के थोथे-झूठे बयानों को छोड दें, तो महंगाई, बेरोजगारी और निर्धनता के तांडव आज भी चहुंओर हो रहे हैं।

 साहित्यिक परिस्थिति

आधुनिक काव्य का उदय उस रीति व श्रृंगार काव्य की पृष्ठभूमि पर हुआ है जो एक ओर तो एकदम रूहिग्रस्त बन चुका था और दूसरी ओर जिसमें जीवन के प्रति उदार और व्यापक दृष्टिकोण का अभाव था। आधुनिक कवि की चेतना उस राग दरबारी काव्य को ग्रहण नहीं कर सकती थी। इसी चेतना ने जन्म दिया एक प्रतिक्रिया को और यह प्रतिक्रिया ही आधुनिक काव्य के रूप में मुखरित हुई।

ध्यान से देखे तो आधुनिक काव्य के जन्म का मूल स्रोत आंग्ल संपर्क है। खड़ीबोली को काव्याभिव्यक्ति का माध्यम बनाया गया जो क्रमशः बढ़ता ही चला गया। काव्य प्रसार के दिन-प्रतिदिन बढ़ते जानेवाले साधनों तथा समाचार पत्रों और पत्रिकाओं एवं काव्यग्रंथों का अधिकाधिक प्रकाशन, सम्मेलन, गोष्ठियां, रंगमंच, चित्रपट, रेडियों तथा टेलीविजन आदि ने काव्य को जन-जन से जोड़ दिया। दूसरी ओर नयी-नयी परिस्थितियों और घटनाओं ने भी हिंदी  काव्य को नए-नए वर्ज्य विषय और पत्रादि प्रदान किए। तीसरी ओर यातायात के बढ़ते साधनों वैज्ञानिक आविश्यकारों तथा बौद्धिक आदान - प्रदानों ने हिंदी काव्य को अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों से जोड़ा और चौथी ओर समयानुकूल नयी भाषा शैली तथा काव्यरूप आदि प्रदान कर काव्य को समयानकूल बनाने में सहयोग दिया। इस प्रकार आधुनिक हिंदी कविता का उदय और विकास एक व्यापक पृष्ठभूमि पर हुआ। आज भी यह क्रम गतिशील है।

आधुनिक कालीन साहित्यिक परिवेश को बाबूगुलाब राय के शब्दों में इस तरह समझा जा सकता हैं "अंग्रेजी राज्य के आने से लोगों का ध्यान जीवन की कठोर वास्तविकताओं की ओर गया। जीवन संग्राम बढ़ा साथ ही जातीय जीवन में भी जाग्रति हुई। लोग अपनी सभ्यता को महत्त्व देने लगे। हिंदू लोगों ने विदेशी धर्मों का मुकाबला करने के लिए अपने धर्म को बुद्धिवाद के आलोक में परिष्कृत करना आरंभ किया। ऐसे बुद्धिवाद और प्रतिद्वंद्विता के समय में जनता के भावों के प्रकाशन के लिए पद्य उचित माध्यम नहीं हो सकता। अतः अंग्रेजी राज्य के साथ- साथ गद्य भी आया। पद्य में ब्रज भाषा का साम्राज्य था किन्तु नवीन रूप के आ जाने से उसकी कोमल कांत पदावली संघर्षमय कठोर भूमि के लिए उपयुक्त न ठहरी।" कहा जा सकता है कि आधुनिक काल की काव्य प्रवृत्तियां कार्या हद तक अपने युग से प्रभावित है।

 सारांश

इस इकाई के माध्यम से आपने हिंदी साहित्य का इतिहास के अंतर्गत आधुनिक काल काल के विषय में जानकारी प्राप्त की। काल विभाजन और नामकरण के पश्चात इस काल की विभिन्न परिस्थितियों से अवगत होते हुए आपने यह भी जाना कि वे कौन कौन से महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जिन्होंने आधुनिक काल को काव्य रचना को प्रेरित एवं प्रभावित किया। इस दृष्टि से इस इकाई के माध्यम से आधुनिक काल के संबंध संबंध में से निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सूचनाएं प्राप्त हई - हिंदी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल अपने पूर्ववर्ती कालों से से कई दृष्टियों से बिल्कुल भिन्न है।

आधुनिक काल में खड़ीबोली गद्य का विकास सबसे आधार पर 'गद्य काल' कहा जाता है। विशिष्ट घटना है. जिसके कारण उसे प्रवृत्ति के इस काल में रचित साहित्य जनजागरण का साहित्य है. जिसके कारण इसे पुनर्जागरण काल के नाम से भी अभिहित किया जाता है।

इस काल में रचित साहित्य उस काल की विभिन्न वरिस्थितियों की देन है।

प्रत्येक दृष्टि से नवीनता एवं आधुनिकता का समावेश इस काल को नवोन्मेष का वाहक सिद्ध करता है।

हिंदी भाषा और साहित्य का चहुंमुखी विकास इस इस काल में हिंदी कविता व्यास इस काल की सर्वोपरि  विशेषता है।

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