"चुरकी और भुरकी" का हिंदी अनुवाद
एक गाँव में दो बहनें रहती थी। एक का था नाम चुरकी और दूसरी का नाम था भुरकी । चुरकी बहुत गरीब और भुरकी अमीर थी। वह बहुत अधिक घमंडी और लालची भी थी। एक दिन चुरकी के घर खाने को कुछ भी नहीं था। उसके बच्चे भूख से रो रहे थे। चुरकी उन्हें रोता देखकर मन में सोचती है कि किसके घर दाल, चावल माँग कर लाऊँ । मायके से ही कुछ लाकर बच्चों को खिला दूँगी। चुरकी मायके जाने का निश्चय करती है और निकल पड़ती है मायके के लिए कुछ ही दूर जाने पर उसे एक बेर का पेड़ मिलता है। बेर कहता है कि मेरी कुछ सहायता कर सकती हो। आस पास बहुत से झाड़ उग गए हैं। मेरे आस पास की सफाई कर दो और लौटते समय अपना मेहनताना ले ले। चुरकी साफ सफाई कर के आगे बढ़ जाती है। थोड़ी सी दूर जाने पर उसे एक सफेद रंग की गाय मिलती है। गाय उस से कहती है कि वह उसके गोठान के गोबर और कचरे की सफाई कर के लौटते समय मेहनताना ले ले। चुरकी सफाई कर के आगे बढ़ जाती है। थोड़ा आगे बढ़ने पर उसे एक चक्की मिलती है वह चुरकी से कहती है कि वह उसके चारों तरफ लिपाई कर दे और लौटते समय अपना मेहनताना ले ले। चुरकी लिपाई कर के आगे बढ़ जाती है। कुछ और दूर आगे बढ़ने पर एक साँप को टीले पर बैठा देखती है। सौंप उस से कहता है कि वह उस के टीले के आस पास की सफाई कर दे और लौटते समय अपनी मजदूरी ले ले। चुरकी टीले की सफाई कर के मायके की ओर चल पड़ती है। चुरकी थकी हारी साँझ को मायके पहुँच जाती है। उसकी भाभी उसका कोई आदर सत्कार नहीं करती है। उसको बासी खाना परोस देती है। बेचारी क्या करती मन मसोसकर खा लेती है और भाभी से प्रार्थना करती है कि उसके बच्चों के लिए भी कुछ दाल चावल दे दे। यह सुनकर भाभी झल्ला कर कहती है कि कहाँ से दें। हमारे पास ही खाने को कुछ नहीं। चुरकी बेचारी चुपचाप अपने घर लौट जाती है। लौटते समय भाभी उसे एक टोकरी दे देती है। चुरकी टोकरी ले कर लोट जाती है। रास्ते मे टीले के पास साँप बैठा मिलता है। वह चुरकी को सोना चांदी देता है। चुरकी उसे लेकर आगे बढ़ती है। उसे वही चक्की मिलती है जो चुरकी को आटा देती है। वह आटा लेकर आगे बढ़ती है। रास्ते में उसे गाय मिलती है। गाय उसे दूध और दही देती है जिसे लेकर चुरकी अपनी राह पर आगे बढ़ जाती है। रास्ते में उसे वही बेर का पेड़ मिलता है जो उसे मीठे बेर और बेर के पकवान देता है। चुरकी की टोकरी भर जाती है। चुरकी टोकरी लेकर घर आती है और आते समय पसीने से लथपथ हो जाती है। घर पहुँच कर अपने बच्चों को आवाज़ लगाती है उसका आवाज सुनकर भुरकी बाहर आती है। भुरकी उसकी टोकरी को भरा देखकर सोचती है की इतना सामान कहाँ से आया। उसके मन में लालच आ जाता है। अपने बच्चों से पूछती है की उसकी मौसी कहाँ गयी थी। बच्चे कहते है कि मामा घर गयी थी। इतना सुनते ही भुरकी के मन में लालच आ जाता है और बच्चों को जल्दी जल्दी खाना खिलाकर मायके की ओर निकल पड़ती है और सोचती है कि जैसे चुरकी को इतना सामान मिला है मुझे भी इतना सामान मिलेगा। इतना क्यों इससे ज्यादा लूँगी मेरी हसियत इस जैसी थोड़े ही है। रास्ते में उसे वही बेर का पेड़, गाय, चक्की और साँप मिलते है जो उसे उनकी सहायता करने को कहते हैं परन्तु घमण्ड के नशे में चूर भुरकी कहती है कि वह मायके जा रही है उसके पास किसी की सहायता करने का समय नहीं है। भैया के घर पहुँचने पर भाभी ने उसे भी भला बुरा सुनाया जैसे चुरकी को सुनाया था। भुरकी मन छोटा करके अपने घर लौट आती है। रास्ते में जब वह टीले के पास पहुंचती है तो वह सोना चांदी देख कर उसे उठाने की कोशिश करती है तभी साँप उसे डंक मारने के लिए दौड़ाता है। भुरकी जान बचा के भागती है। भागते भागते चक्की के पास पहुंच कर लालच दश आटा उठाने की कोशिश करती है तो चक्की भी उसे मारने के लिए दौड़ाती है। वहाँ से भागते हुए वह गाय के पास पहुँच जाती है और गाय के पास रखे दूध दही को उठाने की कोशिश करने पर गाय उसे मारने के लिए दौड़ाती है। भुरकी जान बचाकर भागते हुए अंत मे बेर के पेड़ के पास पहुंचती है। पके हुए बेर देखकर उसके मुहँ में पानी आ जाता है और वह बेर तोड़ने की कोशिश करती है। बेर का पेड़ उसे काँटों से नोचने के लिए दौड़ता है। वहाँ से जान बचा कर भागते हुए घर पहुँचती है। घर पहुँचते पहुँचते वह पसीने से तरबतर हो जाती है। भुरकी को अपने घमण्डी स्वभाव के कारण कुछ भी नहीं मिलता, उसे निराश होकर खाली हाथ घर लौटना पड़ता है।
शिक्षा:-
हमें सदा एक दूसरे की सहायता करनी चाहिए ना कभी घमण्ड करना चाहिए।
संकलन कर्ता
अर्चना शर्मा सहायक शिक्षक
प्राथमिक शाला खिसोरा
विकास खण्ड अकलतरा
जिला जांजगीर चाम्पा छत्तीसगढ़
(छत्तीसगढ़ी में चुरकी और भुरकी की कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है। यह कहानी सन्देश देती है कि जैसा व्यवहार हम दूसरों के साथ करते हैं वैसा ही व्यवहार हमारे साथ किया जाता है।)
चुरकी अउ भुरकी
एक गॉव म दु बहिनी रहयँ। एक के नाव चुरकी अउ दूसर के नाव रहय भुरकी।चुरकी बहुत गरीबीन रहय अउ भुरकी ह थोरकिन बढ़हर रहय।भुरकी बहुत घमंडी अउ ललचहीन रहय।
एक दिन के बात ए चुरकी के घर म खाय बर कुछू नई रहय। लईका मन भूख म रोवत रहयँ । चुरकी लइका मन के रोवई ल देख के मन म सोचथे ।काखर मेर दार-चाऊंर माँगव ,मइके जाथौं भईया मेर कुच्छु मांग के लाके लईका मन ल खवा हूँ।
चुरकी बेचारी मइके जाय बर घर ले निकल जथे, कुछ दुरिहा गे रथे तभेच रस्ता म एक ठन बोइर पेड़ रथे ।बोइर पेड़ ह चुरकी ल कहिथे, चुरकी तै मोर आजु बाजू ल खरहर बटोर देते।मइके ले लहुट खनी तोर बनी ल ले लेते।चुरकी बेचारी पेड़ के चरोकोति ल बहार बटोर देथे।
बाहरे बटोरे के बाद मइके डहर आघू बढ़ जथे, थोड़ेच दुरिहा गे रथे तभेच एक ठन सुरहीन गईया मिल जथे ।सुरहीन गइया ह कहिथे चुरकी मोर गोबर कचरा ल बहार देते। मइके ले लहूटबे त तोर बनी ल ले लेबे।चुरकी गोबर ल बहार के साफ कर दिथे अउ आघू बढ़ जथे।
थोड़ेच दुरिहा गे रथे तभे जांता मिल जथे ।जांता कहिथे चुरकी मोर चारो कोती ल लिप देते। लहुटबे त तोर बनी ल ले लेबे। चुरकी बेचारी जांता के तीर ल लिप देथे अउ मइके कोती आघू चल देथे।
कुछ दुरिहा गे रथे तभे एक ठन भिंभोरा म साँप ह बइठे रथे।सांप कहिथे ए चुरकी तै मोर भिंभोरा के तीर ल साफ कर देते। लहुटत खनी तोर बनी ल ले लेबे।चुरकी बेचारी बढ़िया साफ कर देथे अउ मइके चल देथे।
मइके म भउजी भईया मन रथे ।भउजी ह पानी देथे अउ बिहनिहा कन के बचे बोरे बासी ल खाय बर दे देेथे। बेचारी का करय कइसनों करके खाथे अउ भउजी ल कहिथे मोर लईका मन के खाय बर दार चाँउंर दे देते ।भउजी झल्ला के कहिथे कहां के ल देवंव।हमरे खाय बर कुछु नई ए।बेचारी चुप कन लहुट जाथे ।
लहुटत लहुटत भउजी ल कहिथे भउजी एक ठन टुकनी दे देथे। भउजी ह टुकनी देथे त टुकनी ल धर के घर लहूट जाथे।
रस्ता म भिंभोरा मेर पहुँचथे त सांप ह बइठे रहिथे। सांप ह चुरकी ल बहुत कन सोन चांदी देथे।चुरकी ह ओ ल धर के आघू बढ़ जथे । उँहा ले आघू बढ़थे त जांता मेर पहुंच जथे। जांता ह बहुत कन पिसान देथे।चुरकी ह पिसान ल धर के फेर घर कोती आघू बढ़ जथे। रसता म गाय मिलथे। गाय ह बहुत कन दूध दही देथे फेर ओ ल लेके चुरकी ह घर कोती बढ़ जथे।रसता म बोइर पेड़ परथे ,बोइर पेंड़ ह बहुत कन पक्का-पक्का, मीठ बोइर अउ बोइर के रोटी देथे। चुरकी के टुकना भर जथे। चुरकी टुकना ल बोहि के घर आ जथे।घर के आवत ले पसीना-पसीना हो जाथे।
घर मेर पहुँचथे त दुरिहा ले अपन लईका मन ल चिल्लाथे,चुरकी के चिल्लाई ल सुन के भुरकी निकल जथे। भुरकी टुकना ल भरे देखथे त सोचथे अतका कन समान कहाँ ले लावत होही ओखर लालच बढ़ जाथे।
अपन लईका मन ल पुछथे तोर मोसी कहां गे रहिस रे।लईका मन कहिथे मम घर गे रहिस ।एतका म भूरकी के मन म लालच आ जथे,अउ लइका मन ल गारी दे दे के जल्दी जल्दी खवाथे अउ मइके जाय बर निकल जथे।मन म सोचथे भइया ह चुरकी ल बहुत कन समान दे हे मैं जाहूं त महू ल देहि। फेर उहू ह मायके जाय बर निकल जाथे।
जाते जात रस्ता म बोइर ,सुरहीन गईया, जांता अउ सांप मन कचरा ल बहारे बटोरे ल कहिथें त भुरकी अइठ के कहिथे, चल हट मैं मइके जाथौ ।तुंहर कचरा बाहरे बर थोरे आए हौं,कहिके अटिया के चल मइके चल देथे ।भईया के घर पहुँचथे त भउजी ह चुरकी ल सुनाइस तइसने भुरकी ल तको सुना देथे ।भुरकी मन ल छोटे करके लहुट जथे।रस्ता म जब भिंभोरा मेर पहुंचथे त बहुत कन सोन-चांदी ल देखके धरे ल करथे,जइसने सोन-चांदी ल धरे बर हाथ ल बढ़ाथे ओइसने ही साँप ह जोर से चाबे ल कूदाथे। भुरकी जान बचाके उँहा ले भागथे।
भागत भागत जांता में पहुँचथे अउ पिसान ल देख के लालच के मारे रुके नई सकय अउ पिसान ल उठाय बर करथे।पिसान ल जइसे उठाय ल करथे। जांता ह भुरकी ल मारे बर जोर से कुदाथे। उहां ले भागत भागत भुरकी ह सुरहीन गइया मेर पहुँच जथे।गइया मेर रखे दूध, दही ल धरे ल करथे ।गइया ह मारे ल जोर से दउड़ाथे ।भुरकी उहां ले जीव बचाके भागथे अंत म बोइर मेर पहुँचथे।पक्का पक्का बोइर ल देख के टोरे ल करथे बोइर के कांटा मन जोर से कोकमे बर दउड़ाथें भुरकी उहां ले जान बचा के भागथे फेर तहाँ ले घरे म आ के रुकथे।घर के पहुँचत ले पसीना म तरबतर हो गे रथे।
भुरकी ल अपन घमंडी स्वभाव के कारन कुछ नई मिलय।
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