कक्षा 10 हिंदी पाठ 2.2 जनतंत्र का जन्म/Jantantra ka Janm

 इकाई 2 समसामयिक मुद्दे

2.2 जनतंत्र का जन्म



व्याख्या खण्ड

1 .  सदियों की ठण्डी - बुझी राह सुगबुगा उठी , मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है , दो राह , समय के रथ का घर्घर नाद सुनो , सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग- इसमें कवि ने जनता को शासन तंत्र सौंपने के लिये आह्वान किया है । 

व्याख्या - कवि कहते हैं कि सदियों से लोगों के मन में ब्रिटिश राजतंत्र को हटाने की सुगबुगाहट थी । जो केवल यहाँ व्यापार करने आये वे बादशाह बन गये उनका पासा पलटता गया और वे समय के साथ आगे बढ़ गये । आज जनता चाहती है कि वे हट जायें और जनतंत्र को स्थान दें ।

विशेष - भाषा प्रवाहपूर्ण अलंकार युक्त , सीधी - सरल है । ओजगुण का प्रयोग हुआ है ।

2 . जनता ? हाँ , मिट्टी की अबोध मूरतें वही , जाड़े - पाले की कसक , सदा सहने वाली , जब अंग - अंग में लगे साँप हों चुस रहे , तब भी न कभी मुँह खोल दर्द सहने वाली ।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग- इसमें कवि ने जनता को शासन तंत्र सौंपने के लिये आह्वान किया है । 

 व्याख्या - कवि कहते हैं कि ब्रिटिश राजतंत्र को वह जनता ललकार रही है जो मिट्टी की अबोध मूर्ति के समान है । जिसने सब कुछ सहा किन्तु जब ब्रिटिश राज्य उन्हें साँप के समान चूस रहा है तो वह जनता दर्द सहने वाली अपना मुँह तो खोलेगी ही क्योंकि उसे जनतंत्र चाहिए ।

विशेष – भाषा प्रवाहपूर्ण , अलंकार युक्त , सीधी और सरल है ।

 3 . जनता ? हाँ , लम्बी - बड़ी जीभ की वही कसम , " जनता सचमुच ही बड़ी वेदना सहती है । " सो ठीक , मगर आखिर इस पर जनमत क्या है ? है प्रश्न गूढ़ ; जनता इस पर क्या कहती है ?

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग- इसमें कवि ने जनता को शासन तंत्र सौंपने के लिये आह्वान किया है । 

व्याख्या -कवि कहते हैं कि कसम खाता हूँ कि जनता बहुत दुःख सह रही है । इस पर जनमत क्या कहता है यह गूढ़ प्रश्न है । किन्तु इस जनता की क्या इच्छा है यह जानना भी तो जरूरी है । 

विशेष- भाषा प्रवाहपूर्ण , अलंकार युक्त , सीधी - सरल है ।

4 . मानो , जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं , जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में ; अथवा कोई दूधमुँही जिसे बहलाने के जंतर - मंतर सीमित हो चार खिलौनों में ।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जनता के सीधे - साधे स्वरूप का वर्णन किया है ।

व्याख्या — कवि कहते हैं कि जनता इतनी मूर्ख नहीं कि उसे आप जिस तरह चाहो बहला लो । जब चाहे तब आप जनता के साथ खिलवाड़ करो । जनता कोई दूधमुँही बच्ची नहीं जिसे आप चार खिलौने देकर बहला लो ।

विशेष- भाषा सीधी - सरल , शासन पर व्यंग  किया गया है।

5. लेकिन होता भूडोल , बवंडर उठते हैं , जनता जब कोपाकुल हो भृकुटी चढ़ाती है , दो राह , समय के रथ का घर्घर नाद सुनो , सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग- कवि ने जनता के क्रोध और उससे होने वाले परिवर्तन का वर्णन किया है । 

व्याख्या - कवि कहते हैं कि जब जनता क्रोधित हो जाती है तो वह भौंहें तानकर अपना विरोध भी दिखा सकती है । इससे धरती पर कंपन और तूफान आने की स्थिति निर्मित हो जाती है । हे शासकों ! समय।  के परिवर्तन की आवाज सुनो। तुम सिंहासन खाली करो जनतंत्र की स्थापना करनी है।

विशेष-भाषा सीधी सरल और ओजपूर्ण है।

6. हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती , साँसों के बल से ताज़ हवा में उड़ता है जनता की रोके राह समय में ताब कहाँ ? वह जिधर चाहती , काल उधर ही मुड़ता है । 

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग -जनता की शक्ति का वर्णन कवि ने किया है । 

व्याख्या – कवि कहते हैं कि जनता की आवाज से राजमहल भी हिल गये हैं । जनता की साँसों से राजा महाराजाओं के ताज भी हिल गये हैं । समय में इतनी ताकत नहीं कि वह जनता के प्रभाव को रोक सके । जनता जैसा चाहेगी वैसा सत्ता परिवर्तन कर सकती है ।

विशेष - लोकतंत्र की शक्ति का सीधी - सरल भाषा में वर्णन ओज गुण युक्त है ।

7 . अब्दों , शताब्दियों , सहस्त्राब्द का अंधकार बीता , गवाक्ष अंबर के दहके जाते हैं , यह और नहीं कोई जनता के स्वप्न अजय चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते जाते हैं । 

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग – जनता अपने स्वप्नों को कैसे साकार करेगी उसका वर्णन है । 

व्याख्या - कवि कहते हैं कि वर्ष , सैकड़ों वर्ष और हजारों वर्षों का अंधकार अब समाप्त होने को है । जनता आसमान की खिड़की को भी अपने रोशनी से दहका सकती है । जनता का जो अजेय स्वप्न है वह गुलामी का अंधेरा मिटा सकता है । 

विशेष – जनतंत्र की भावना का वर्णन प्रवाहपूर्ण भाषा में है ।

8. सबसे विराट् जनतंत्र जगत् का आ पहुँचा , तैंतीस कोटि - हित , सिंहासन तैयार करो ; अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का है , तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो ।

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग- कवि ने भारत के विराट जनतंत्र का आह्वान किया है ।

व्याख्या– कवि कहते हैं कि भारत में जनतंत्र की भावना का विकास हो चुका है । भारत की तैंतीस करोड़ जनता अपना शासक चुनने वाली है । आज प्रजा का अभिषेक है जो अपने नेता का चुनाव करने वाली है ।

विशेष— ओजगुण युक्त कविता , भाषा सरल प्रवाहपूर्ण है । 

9. आरती लिए तू किसे ढूँढता है मूरख , मंदिरों , राज प्रासादों में , तहखानों में ? देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे देवता मिलेंगे , खेतों में ,   खलिहानों में.

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग- जनता को ही ईश्वर का प्रतिनिधि माना है ।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि जिस देवता को तुम आरती का थाल लिये मंदिर , महलों और तहखानों में ढूँढ रहे हो वे देवता हमारे मजदूर हैं वे सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे हैं अथवा खेत - खलिहान में काम कर रहे हैं ।

विशेष- समाज के मजदूर वर्ग की महानता का वर्णन प्रवाहपूर्ण भाषा शैली में किया है ।

10 . फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं , धूसरता सोने से शृंगार सजाती है , दो राह , समय के रथ का घर्घर नाद सुनो , सिंहासन खाली करो कि जनता आती है । 

सन्दर्भ - प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ' दिनकर ' द्वारा रचित कविता “ जनतंत्र का जन्म ' से लिया गया है ।

प्रसंग- मजदूरों की महत्ता को प्रतिपादित किया है ।

व्याख्या - कवि कहते हैं कि राज्य में फावड़े और हल का महत्व बढ़ने वाला है । सोने की चमक फीकी पड़ने वाल है । समय रूपी रथ की आवाज पर ध्यान दो अब सिंहासन प जनतंत्र का अधिकार होने वाला है । विश्व का सबसे बड़ जनतंत्र भारत का बनने वाला है । 

विशेष- मजदूरों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए जनते का आह्वान सीधी सरल भाषा में है ।

अभ्यास - प्रश्न 

पाठ से 

प्रश्न 1. ' अभिषेक आज राजा का नहीं प्रजा का यह किस अवसर के लिए कहा गया है ? 

उत्तर -भारत में जनतंत्र की स्थापना हो इसके लिये प्रजा का अभिषेक करने की बात कही गयी है । 

प्रश्न 2. जब जनता की भौहें क्रोध में तन जाती हैं तो क्या - क्या होता है ?

उत्तर- जब जनता की भी क्रोध में तन जाती हैं तो धरती हिलने लगती है , तूफान आने लगते हैं अर्थात् परिवर्तन की आँधी चलती है । 

प्रश्न 3. बदली हुई परिस्थितियों में अब राजदण्ड किसे बनाया जाएगा और क्यों ? 

उत्तर- अब फावड़े और हल को राजदण्ड बनाया जाएगा क्योंकि देश का विकास करने वाले मजदूर और किसान ही होंगे । उत्तर- कवि ने गिट्टी तोड़ने वाले और खेतों में काम करने वालों को देवता इसलिये कहा है कि उन्हीं के परिश्रम से जनता का कल्याण हो रहा है । मजदूरों के बिना विकास  संभव नहीं है।

प्रश्न 6. कवि ने जनता के लिए सिंहासन खाली कर देने के लिए क्यों कहा है ? 

उत्तर- राजतंत्र के स्थान पर जनतंत्र की स्थापना करनी है । जनता अपना शासक स्वयं चुनेगी । इसलिये जनता के लिए सिंहासन खाली करने को कहा गया है । 

प्रश्न 4. जनता की सहनशीलता के कवि ने क्या क्या उदाहरण दिए हैं ? 

उत्तर -कवि कहते हैं कि जनता मिट्टी की मूर्ति के समान अबोध है । सब कुछ सहकर चुप रहने वाली है । कितनी भी पीड़ा हो जनता मुँह खोलने वाली नहीं है ।

प्रश्न 5. कवि ने गिट्टी तोड़ने वालों और खेतों में काम करने वालों को देवता क्यों कहा है ? 

उत्तर – कवि ने गिट्टी तोड़ने वाले और खेतों में काम करने वालों को देवता इसलिये कहा है कि उन्हीं के परिश्रम से जनता का कल्याण हो रहा है । मजदूरों के बिना विकास सम्भव नहीं है ।

प्रश्न 6. कवि ने जनता के लिए सिंहासन खाली कर देने के लिए क्यों कहा है ? 

उत्तर - राजतंत्र के स्थान पर जनतंत्र की स्थापना करनी है । जनता अपना शासक स्वयं चुनेगी । इसलिये जनता के लिए सिंहासन खाली करने को कहा गया है ।

प्रश्न 7. जगत का सबसे विराट जनतंत्र किसे कहा गया है ? 

उत्तर- भारत के जनतंत्र को जगत का सबसे विराट अ नेतृत्व करता है । जनतंत्र कहा गया है , क्योंकि बहुत बड़ी आबादी का यह प्रश्न 

8. जनतंत्र कविता में निहित भाव क्या है ? 

उत्तर- जनतंत्र कविता में कवि ने जनता के आक्रोश का वर्णन किया है । कवि इस कविता के माध्यम से जनता में निहित आक्रोश भाव को प्रकट करना चाहते हैं । 

प्रश्न 9. ' जनतंत्र का जन्म ' किस रस की कविता है ? 

उत्तर- वीर रस ।

भाषा व्याकरण

समास दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जब एक नया शब्द बनता है तो उसे सामासिक शब्द और इस प्रक्रिया को समास कहते हैं । 

समास के प्रकार ( 1 ) तत्पुरुष समास जब किसी शब्द में पूर्व पद गौण तथा उत्तरपद प्रधान होता है तो वहाँ तत्पुरुष समास होता है । ये संज्ञा और संज्ञा के मिलने से तथा संज्ञा और क्रिया मूलक शब्दों के मिलने से बनते है जैसे स्नानगृह ( स्नान के लिए गृह ) हस्तलिखित ( हस्त द्वारा लिखित ) । इनके समस्तपद बनते समय विभक्ति चिह्नों का लोप हो जाता तथा इसके विपरीत समास विग्रह करते समय विभक्ति चिनों से पर , को द्वारा का के लिए आदि का प्रयोग किया जाता है । तत्पुरुष समास के उपमेद ( प्रकार ) 

( क ) कर्मधारय तथा तत्पुरुष समास के दो उपभेद है ( ख ) द्विगु कर्मधारय ( तत्पुरुष ) समास ( क ) इसमें पूर्वपद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है । पूर्वपद तथा उत्तरपद में उपमेय उपमान संबंध भी हो सकता है । विशेषण विशेष्य जैसे- पीतांबर , महाविद्यालय , नीलगाय उपमेय और उपमान घनश्याम कमलनयन , चंद्रमुख 

( ख ) द्विगु समास द्विगु समास में भी उत्तरपद प्रधान होता है और विशेष्य होता है जबकि पूर्वपद संख्यावाची विशेषण होता है । जैसे- पंचवटी तिराहा , शताब्दी , चौमासा आदि । 

(2)बहुमीहि समास जिस सामासिक शब्द में आए दोनों ही पद गौण होते हैं और दोनों मिलकर किसी तीसरे पद के विषय में कुछ कहते हैं और यह तीसरा पद ही प्रधान होता है । जैसे- नीलकंठ नीला है कठ जिसका अर्थात् शंकर दशमुख दश मुख वाला अर्थात् रावण चतुर्भुज चार भुजाएँ है जिसकी अर्थात् विष्णु 

(3 ) द्वंद्व समास जिस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं उसे द्वंद्व समास कहते हैं । इसमें दोनों पद को जोड़नेवाले अव्यय और ' या का लोप हो जाता है । जैसे राजा रानी राजा और रानी पति पत्नी पति और पत्नी हार जीत हार या जीत हार और जीत दूध दही दूध और दही । 

(4) अव्ययी भाव समास जिस समास में पूर्वपद अव्यय हो उसे अव्ययी भाव समास कहते है । जैसे- प्रतिदिन यथाशक्ति आमरण बेखटके 

द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर - द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद उसका विशेष्य परंतु बहुब्रीहि समास में पूरा पद ही विशेषण का काम करता है । 

कई ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें दोनों समासों के अंतर्गत रखा जा सकता है । जैसे चतुर्भुज चार भुजाओं का समूह ( द्विगु ) चार भुजाएँ हैं जिसकी ( बहुव्रीहि इसी तरह त्रिनेत्र , चतुर्मुख तीन आँखों का समूह तथा चार मुखों का समूह ( द्विगु समास ) जबकि त्रिनेत्र तीन नेत्र है अर्थात् शिव तथा चार मुख है जिनके अर्थात् ब्रह्मा ( बहुव्रीहि समास ) में लेंगे , यानी इनके विग्रह पर निर्भर करता है कि इन्हें किस समास के अंतर्गत रखा जाएगा ।

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