इकाई 1 प्रकृति और पर्यावरण
1.3 बादल को घिरते देखा है - नागार्जुन
सप्रसंग व्याख्या
अमल धवलगिरि के शिखरों पर बादल को घिरते देखा है ।
छोटे - छोटे मोती जैसे उसके शीतल तुहिन कणों को मानसरोवर के उन स्वर्णिम कमलों पर गिरते देखा है बादल को घिरते देखा है ।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि ' नागार्जुन ' द्वारा रचित कविता " बादल को घिरते देखा है " से लिया गया है ।
प्रसंग – इस पद्यांश में कवि वर्षा के बादलों का आगमन एवं कमलों पर उनके बरसने का वर्णन करते हैं ।
व्याख्या — कवि कहते हैं कि मैंने निर्मल श्वेत पर्वत की चोटियों पर बादल घिरते देखा है । उन बादलों में से निकलने वाले मोती की बूँदों जैसे ओस कृणों को मानसरोवर तालाब में खिले स्वर्णिम कमल पर गिरतै देखा है । उसके बाद पुन : आकाश में बादलों को घिरते हुए देखा है ।
विशेष - प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य दर्शाया है । छोटी - बड़ी कई झीलें हैं
2. उनके श्यामल - नील सलिल में समतल देशों से आ - आकर पावस की ऊमस से आकुल तिक्त - मधुर बिसतंतु खोजते हंसों को तिरते देखा है बादल को घिरते देखा है ।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि ' नागार्जुन ' द्वारा रचित कविता " बादल को घिरते देखा है " से लिया गया है ।
प्रसंग - प्राकृतिक तत्वों का वर्णन किया गया है ।
व्याख्या - कवि कहते हैं कि धवल हिमगिरि पर कई छोटी - बड़ी झीलें हैं । इन झीलों के काले - नीले जल में पावस की उमस से व्याकुल पक्षी कीड़े - मकोड़ों को खोजने आते रहते हैं । इसी झील में हंस भी तैरते रहते हैं । इसी शिखर पर बादल घिरते हैं ।
विशेष- प्रकृति का सूक्ष्म चित्रण किया गया है । ऋतु बसंत का सुप्रभाव था मंद - मंद था अनिल बह रहा है।
3. बालारूण की मृदु किरणें थीं अगल - बगल स्वर्णाभ शिखर थे एक - दूसरे से विरहित हो अलग - अलग रहकर ही जिनको सारी रात बितानी होती निशाकाल के चिर - अभिशापित बेबस उन चकवा - चकई का बंद हुआ क्रंदन , फिर उनमें उस महान सरवर के तीरे शैवालों की हरी दरी पर प्रणय कलह छिड़ते देखा है बादल को घिरते देखा है ।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि ' नागार्जुन ' द्वारा रचित कविता " बादल को घिरते देखा है " से लिया गया है ।
प्रसंग- इस पद्यांश में कवि बसंत का दृश्य और उसका प्रकृति के जीवों पर वर्णन बतलाया है ।
व्याख्या - कवि कहते हैं कि बसंत ऋतु का दृश्य था मंद वायु बह रही थी । उगते सूर्य की किरणों से पर्वत शिखर स्वर्णिम दिखाई दे रहे थे । एक - दूसरे अलग से रहकर रात बिताने का अभिशाप लिये चकवा - चकवी को सूर्योदय के बाद तालाब के किनारे शैवाल पर प्रणय क्रीड़ा करते हुए देखा है । बादलों को घिरते हुए देखा है ।
विशेष - प्रकृति के विभिन्न दृश्यों का वर्णन सहज रूप में किया है।
4 . दुर्गम बर्फानी घाटी में शत - सहस्त्र फुट ऊँचाई पर अलख नाभि से उठने वाले निज के ही उन्मादक परिमल के पीछे धावित हो - होकर तरल- तरुण कस्तूरी मृग को अपने पर चिढ़ते देखा है । बादल को घिरते देखा है ।
संदर्भ - प्रस्तुत पद्यांश कवि ' नागार्जुन ' द्वारा रचित कविता " बादल को घिरते देखा है " से लिया गया है ।
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कस्तूरी मृगों का वर्णन किया है
व्याख्या - कवि कहते हैं कि दुर्गम बर्फानी घाटी में हजारों फुट की ऊँचाई पर न दिखने वाली नाभि से उठने वाली कस्तूरी की सुगंध से उन्मादित कस्तूरी मृग को दौड़ते हुए एवं कस्तूरी प्राप्त न होने पर चिढ़ते हुए देखा है और उसी घाटी में बादलों को घिरते हुए देखा है ।
विशेष- कस्तूरी मृग के माध्यम से प्रकृति के सूक्ष्म तत्वों का वर्णन सरल भाषा में किया है ।
अभ्यास - प्रश्न
पाठ से
प्रश्न 1. मानसरोवर के कमल को स्वर्णिम कमल कहने का क्या आशय है ?
उत्तर- मानसरोवर झील पर उगते सूर्य की लालिमा कमल के फूलों पर पड़ती है । उस लालिमा से कमल का पुष्प सुनहरा दिखाई देता है । इसलिए उसे स्वर्णिम कमल कहा है ।
प्रश्न 2. ' बादल को घिरते देखा है ' कविता के प्रकृति चित्रण को अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर- निर्मल पर्वत शिखर पर बादल घिरते हैं । बादल में स्थित वाष्प कण मोती जैसे ओस के समान कमल के फूलों पर गिरते हैं । वर्षा की उमस से प्रभावित पक्षी सरोवर के जल में कीड़े - मकोड़े खोजते हैं । इसी सरोवर में हंस भी तैरते हैं । हवा मंद गति से बहती है । उगते सूर्य की किरणों से तालाब का कमल स्वर्णिम दिखाई देता है । रातभर अलग रहने वाले चकवा - चकवी का सुबह क्रंदन बन्द हो जाता है वे शैवाल पर प्रणय क्रीड़ा करते हैं । दुर्गम घाटी में कस्तूरी मृग अपनी ही कस्तूरी की सुगंध से उन्मादित होकर दौड़ते हैं कस्तूरी न दिखने पर चिढ़ जाते हैं । यहाँ प्रकृति भी बादलों के घिरने पर उन्मादित हो जाती है ।
प्रश्न 3. कवि चकवा चकई द्वारा किन मनोभावों को कविता में बताना चाहते हैं ?
उत्तर- सूर्योदय के आनंद का चकवा - चकई पर पड़ने वाले प्रभाव को कवि बताना चाहते हैं । कवि कहते हैं कि सूर्योदय के साथ ही विरहित चकवा - चकई का क्रंदन बंद हो जाता है वे आनंदित होने लगते हैं ।
प्रश्न 4. कवि ने कस्तूरी मृग का उल्लेख किस संदर्भ में किया है ?
उत्तर- कस्तूरी मृग अपनी नाभि की सुगंध से उन्मादित हो जाते हैं और दुर्गम घाटियों में दौड़ते हैं । उनके उन्माद के कारण उनका वर्णन किया है ।
प्रश्न 5. ( क ) ऋतु बसंत का ........ शिखर थे
उत्तर- कवि कहते हैं कि बसंत ऋतु का प्रात : काल था । वायु धीमे - धीमे बह रही थी । उगते सूर्य की मृदु किरणों से पर्वत शिखर स्वर्णिम दिखाई दे रहे थे । प्रात : काल , सूर्योदय और सूर्य किरणों की आभा का चित्रण किया गया है ।
( ख ) दुर्गम बर्फानी घाटी में शत - सहस्त्र फुट ऊँचाई पर अलख नाभि से उठने वाले निज के ही उन्मादक परिमल ।
उत्तर – कठिन चढ़ाई वाली बर्फ की घाटी में सौ हजार फुट की ऊँचाई से कस्तूरी मृग की नाभि से सुगंध फैलने लगती है । कस्तूरी मृग इसे देख नहीं सकते किन्तु सुगंध से बेचैन होकर खोजते रहते हैं ।
प्रश्न 6. कवि ने बसंत ऋतु के जिस दृश्य ( सुप्रभाव ) का वर्णन कविता में किया है उसका अपने शब्दों में वर्णन कीजिए ।
उत्तर- कवि कहते हैं कि वसंत ऋतु में वायु मंद गति से प्रवाहित होती है । उगते सूर्य की किरणों से पर्वतों की चोटियाँ स्वर्णिम दिखाई देती हैं । एक - दूसरे से अलग रहकर रात बिताने का अभिशाप प्राप्त चकवा - चकवी प्रातःकाल होते ही क्रंदन बंद करते हैं । सुबह होते ही सरोवर के पास शैवाल की हरी दरी पर प्रणय कलह करने लगते हैं ।
प्रश्न 7. शैवालों को हरी दूरी क्यों कहा गया है ?
उत्तर- शैवाल धरती पर पास - पास मुलायम ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे हरी दरी बिछी हुई हो । इसलिये शैवालों को हरी दरी कहा है ।
पाठ से आगे
प्रश्न 1. ' बादल को घिरते देखा है ' कविता में उगते हुए सूर्य और उस समय के प्राकृतिक दृश्य का चित्रण हुआ है । उसी प्रकार अस्त होते सूर्य के संध्याकालीन दृश्य पर समूह में बैठकर चार - छः पंक्तियों की कविता की रचना कीजिए ।
उत्तर- दिवस का अवसान , प्रकृति का बदला परिधान डूबते सूरज की रक्ताभ किरणें , आ रही हैं प्रकृति में लालिमा भरने ।। तरू शिखा , पशु जगत पर , डूबते सूरज का तेज प्रखर ।। बदला जन - जीवन का पूरा रूप परिवर्तन भी लगता है खूब।
प्रश्न 2. यहाँ सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' जी की कविता ' सखि बसंत आया ' का कुछ अंश दिया जा रहा है । बसंत ऋतु में प्रकृति किस प्रकार का रूप धारण करती है ? पंक्तियों के आधार पर उसके सौन्दर्य का वर्णन कीजिए ।
सखि बसंत आया भरा हर्ष वन के मन नवोत्कर्ष छाया । किसलय - वसना नववय - लतिका मिली मधुर प्रिय - उर तरू - पतिका मधुप - वृन्द बन्दी पिक स्वर नभ सरसाया ।
लता - मुकुल - हार - गंध - भार भर वही पवन बंद मंद मंदतर जागी नयनों में वन यौवन की माया ।
उत्तर- हे सखि ! बसंत ऋतु के आने पर वनों में हर्ष छा जाता है । पत्ते हीन वृक्ष , नयी उगी लताएँ , वृक्ष से अलग होने वाली पत्तियों और कोयल की मधुर आवाज सुहानी लगती उन है । लताएँ सुगंधित हो जाती हैं । मंद बहने वाली पवन से क में पुनः यौवन के आगमन की आहट फैल जाती है ।
प्रश्न 3. कविता में प्रवासी पक्षियों का उल्लेख कि गया है । पता कीजिए मौसम के किस बदलाव के कारण प्रतिवर्ष प्रवासी पक्षी अनुकूल जलवायु के लिए दूर देश से आते हैं। साथ ही यह ज्ञात कीजिए कि भारत प्रवासी पक्षी कहाँ - कहाँ से आते हैं , कितने समय तक क ठहरते हैं और कब लौटते हैं ?
उत्तर- उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु की अधिकता के कारण साइबेरिया के सारस पक्षी हिमालय की तराई के झीलों में आते हैं । बसंत ऋतु के बाद ये पक्षी पुन : अपने देश लौटने लगते हैं । लगभग शीत के चार माह तक साइबेरियन पक्षी भारत में रहते हैं । ग्रीष्म के प्रारम्भ होते ही लौटने लगते हैं ।
भाषा के बारे में
प्रश्न 1. तुहीन शब्द का सही अर्थ क्या है ?
उत्तर - ओस ।
प्रश्न 2. बालारूण शब्द का सही अर्थ क्या है ?
उत्तर- उगता सूरज
प्रश्न 3. क्रंदन शब्द का सही अर्थ क्या है ?
उत्तर - दुःख भरा विलाप ।
प्रश्न 4. शब्द युग्म खोजकर अर्थ लिखिए
उत्तर- अजेय -जिसे जीता न जा सके।
अज्ञेय- जिसे जान न सके।
तरणी-नाव
तरुणी- स्त्री
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