संस्कृत कक्षा सातवीं त्रयोदश: पाठ: सत्सङगति ( अच्छी संगति )

 त्रयोदश: पाठ:

 सत्सङगति ( अच्छी संगति )



 सतां सङगति - सत्सङगतिः कथ्यते । अस्मिन् संसारे यथा सज्जनाः तथा दुर्जनाः अपि सन्ति । यद्यपि पूर्वजन्मन : गुणदोषौ अपि मनुष्ये जन्मना आगच्छतः । तथापि नहि कोऽपि जनः जन्मतः दुर्जनो वा भवति अपितु मानवे संसर्गस्यावि विशेष रूपेण प्रभावः भवति । यः यादृशेन पुरुषेण सह सङ गतिं करोति , यादृशेन पुरुषेण च सह तिष्ठति , उपविशति , खादति , पीवति , आलापसंलार्पो च करुते , तस्य तादृशः , एव स्वभावो भवति । यदि सज्जनैः सह सङ्गति भवति , तर्हिनरः सज्जनः भवति । चेत् दुर्जनैः सह सङ्गति भवति तर्हि सः दुर्जनः भवति , इति प्रकृति नियमः । अतएव नीतिकाराः कथयन्ति - संसर्गजा दोषगुणाः भवन्ति ।

शब्दार्थाः- सतां सज्जनों की , कथ्यते = कहते हैं , यथा = जैसे , तथा- वैसे , अपि- भी , जन्मना- जन्म से , कोऽपि -कोई भी , अपितु- बल्कि , संसर्गस्य = संगति का , सह = साथ , तर्हि = तो , चेत् = यदि । 

अनुवाद - सज्जनों की संगति को सत्संगति कहते हैं । इस संसार में जैसे सज्जन हैं , वैसे ही दुर्जन भी हैं । यद्यपि पूर्वजन्म के गुण - दोष भी मनुष्य जन्म में आते हैं । तथापि कोई जन्म से दुर्जन नहीं होता वरन् मनुष्य पर संगति का विशेष प्रभाव पड़ता है । वह जिस प्रकार के मनुष्य के साथ संगति करता है , जिस प्रकार के मनुष्यों के साथ बैठता , उठता है , खाता है , पीता है और व्यवहार करता है , उसका स्वभाव भी उसी प्रकार बन जाता है । यदि संगति सज्जनों की है तो मनुष्य सज्जन बनता है । उसी प्रकार यदि संगति कृत दुर्जनों की है तो वह दुर्जन बनता है - 

यही प्रकृति का नियम है । इसीलिए नीतिकार कहते हैं चार के संगति से ही गुण - दोष जनमते हैं । 

सत्सङ्गेन मनुष्येणु बहवः गुणाः उद्भवन्ति । सत्सङ्गेन मनुष्यः विवेकवान् , श्रद्धावान् , शीलवान् , परोपकारी भक्तिमान् च भवति । दर्जनानां सङ्गकरणेन तु दुर्गुणाः एवं प्रादुर्भवन्ति । सत्यमेव मानव जीवने सत्सङ्ग उन्नतेः सोपानमस्ति । अतः सर्वदा सत्पुरुषाणां एवं सङ्गतिः कर्तव्या । शास्त्रस्य तु अयं निर्देश : या अस्ति यत् विद्यालंकृतः अपि दुर्जनः परिहर्तव्यः । यथा - दुर्जनः परिहर्तव्यः विद्यालङ्कृतोऽपि सन् । मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयङ्कर ॥ 

 शब्दार्थाः – उद्भवन्ति = उत्पन्न होते हैं , सत्सङगेन = सतसंगति से , भक्तिमान्- भक्त , प्रादुर्भवन्ति-- उत्पन्न होते हैं , उन्नते उन्नति की , सोपानम्- सोढ़ी , सर्वदा - करनी चाहिए , तु -तो , यत् -कि , परहिर्तव्य-दूर रहना चाहिए , मणिना -मणि से , भयंकर -खतरनाक ।

अनुवाद - संगति से मनुष्य में बहुत से गुण उत्पन्न होते हैं । सत्संगति से मनुष्य विवेकवान , श्रद्धावान , शीलवान , परोपकारी और भक्तिमान बनता है । दुर्जनों की संगति से तो दुर्गुण ही उत्पन्न होते हैं । सत्य ही मानव जीवन में सत्संगति और उन्नति की सीढ़ी है । इसलिए हमेशा सज्जनों की संगति करनी चाहिए । शास्त्रों का भी यही निर्देश है कि जो विद्या से अलंकृत हैं , उन्हें भी दुर्जनों से दूर रहना चाहिए । यथा-

 श्लोकार्थ - विद्यारूपी अलंकार से अलंकृत मनुष्य को भी दुर्जनों से दूर रहना चाहिए । क्योंकि मणि से भूषित होने पर भी सर्प भयंकर ( खतरनाक ) ही होता है।

यद्यपि वर्तमान युगे सज्जनाम् अभावः प्रायेण दृष्टिगोचरः भवति तथापि सत्सङ्गसस्य महत्वं विज्ञाय आत्मनः कल्याणाय च प्रयत्नेन सत्सङ्गगः एवं करणीयः । सत्यमेव सत्यङ्गगति विषये

 उक्त -

जाइयं धियो हरति , सिञ्चति वाचि सत्यं मानोन्नतिं दिशति , पापमापकरोति । चेतः प्रसादयदि दिक्षु तनोति कीर्तिम , सत्सङ्ग्रगतिः कथम किं न करोति पुंसाम् ।

 एक कथा प्रचलिता एकस्मिन् नीडे द्वौ शुक न्यवसताम् । दैव वशात् एकः शुकः सन्ताश्रमे अवसत् । द्वितीयः चौरस्य गृहे न्यवसत् । सन्ताश्रमे सन्तस्य सद्विचारेण प्रभावितो भूत्वा प्रथमः शुकः सत्यं वदतिस्म । परं द्वितीय चीरस्य आचरण प्रभावेण मिथ्या वदति स्म । अतः सतां सङ्गगति श्रेयस्करा भवतीति ।

शब्दार्था : अभाव :- कमी , विज्ञाय  जानकर , उक्तः - कहा गया है , जाड्यं = अज्ञानता , सिंञ्चति = सींचती है , दिक्षु - दिशाओं में , तनोति -फैलाती है , कथय : - कहो , पुंसाम्- मनुष्य के लिए , नीडे = घोसले में , न्यवसताम् = निवास करते थे , दैववशात्- भाग्यवश , शुकः = तोता , मिथ्या = झूठ । 

अनुवाद - भले ही वर्तमान युग में सज्जनों की कमी दिखाई पड़ती है , तब भी सत्संगति के महत्व को जानकर आत्मकल्याण के लिए त्नपूर्वक सत्संगति करनी चाहिए । सत्संगति के विषय में सत्य ही कहा जाता है -

श्लोकार्थ- अज्ञानता रूपी अंधकार को हरती है , सदाचार को सींचती है , मान बढ़ाती है , पापों से दूर रखती है , कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाकर प्रसन्नता देती है । कहो ! सत्संगति मनुष्य के लिए क्या नहीं करती ?

 एक कथा प्रचलित है , एक घोसले में दो तोता निवास करते थे । भाग्यवश एक तोता संतों के आश्रम में रहने लगा , दूसरा चोर के घर में रहने लगा । संत के आश्रम में रहने वाला तोता संत के । सदाचरण से प्रभावित होकर सत्य बोलता था लेकिन दूसरा तोता चोर के आचरण के प्रभाव से झूठ बोलता था । अतः सज्जनों की संगति हमेशा श्रेयस्कर ( लाभकारी ) होती है ।

प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए -

( क ) मानवे कस्य प्रभावः भवति ? 

उत्तर - मानवे संसर्गस्य प्रभावः भवति ।

( ख ) सत्सङ्गगेन मनुष्य कीदृशः भवति । 

उत्तर - सत्सङगेन मनुष्य सज्जनः भवति ।

( ग ) दुर्जनानां सडगेन किं भवति ? 

उत्तर – दुर्जनानां सडगेन मनुष्य दुर्जनः भवति ।

( घ ) उन्नत्या : सोपानं किम् अस्ति ? 

उत्तर - उन्नत्या : सोपानं सत्सडगः अस्ति ।

( ङ ) शास्त्रस्य कः निर्देशः अस्ति ? 

उत्तर - शास्त्रस्य तु अयं निर्देशः अस्ति यत् विद्यालंकृत : अपि दुर्जनः परिहर्तव्यः । 

( च ) सत्सडगतिः किं करोति?

उत्तर - सत्सङगति मनुष्येषु बहवः गुणाः उद्भवन्ति । 

( छ ) सतां सडगतिः कीदृशी भवति ?

 उत्तर- सतां सङ्गतिः श्रेयस्करा भवति । 

भावबोधप्रश्ना :

 प्रश्न 2. निम्नलिखित पदों में विभक्ति , वचन एवं लिंग बताइए उत्तर

 पद       विभक्ति  वचन   लि 

( क ) सताम्  द्वितीय एक व. पु.

( ख ) संसारे सप्तमी एक.व.नपु

( ग ) दुर्जनै :तृतीया बहु. पु.

( घ ) नीतिकारा: प्रथमा बहु. पु.

( ङ ) विवेकवान् द्वितीया बहु. पु.

( च ) आत्मनः .पंचमी एक. नपु.

( छ ) अस्मिन नीडे सप्तमी एक. नपु.

( ज ) सन्ताश्रमे सप्तमी एक. नपु.

प्रश्न 3. निम्नलिखित पदों का विग्रह करें और समास का नाम बताइये।

उत्तर -

( क ) पद- सत्सङगतिः

 विग्रह -सतांसङगतिः

समास- तत्पुरुष समास

( ख )पद- गुणदोषौ

विग्रह-गुणश्च दोषश्च

समास- द्वन्द्व समास

( ग ) पद-मानव जीवने

विग्रह-मानवस्य जीवने

समास-तत्पुरुष समास

( घ ) पद-सप्तपुरुषाणाम्

विग्रह - सप्त पुरुषाणाम् समाहार :

समास- द्विगु समास


बोधविस्तारा :

 रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए

( क ) सतां सङगति सत्सङगतिः कथ्यते । .

( ख ) सत्सङगेन मनुष्येषु गुणाः आयान्ति ।

( ग ) मानवजीवने सत्सडग : उन्नते : सोपानं अस्ति ।

( घ ) विद्यालडकृतः अपि दुर्जनः परिहर्तव्यः । 

( ङ ) सतां सडगति : नरः सज्जनः भवति ।

 प्रश्न 4. संस्कृत में अनुवाद कीजिए

( क ) संसार में सज्जन भी हैं ।

अनुवाद - संसारे सज्जनाः अपि सन्ति ।

( ख ) मनुष्य पर संसर्ग का प्रभाव पड़ता है । 

अनुवाद- मानवे संसर्गस्य प्रभावः भवति ।

( ग ) वर्तमान युग में सज्जनों का अभाव दिखाई देता है ।

अनुवाद - वर्तमानयुगे सज्जनानां अभाव : दृष्टिगोचरः भवति ।

( घ ) सत्सडग से मनुष्य की उन्नति होती है । 

अनुवाद - सत्सङगेन मनुष्यस्य उन्नतिः भवति । 

( ङ ) सत्सङगति श्रेयस्कर होती है ।

अनुवाद -सत्सङगति श्रेयस्करा भवति । 

प्रश्न 5. संधि विच्छेद करते हुए संधि का नाम एवं नियम बताइए-

 यद्यपि , मनुष्योपरि , विद्यालयकृतः , भवतीति ।

उत्तर- ( 1 ) यद्यपि = यदि + अपि ( इ + अ = य ) = यण स्वर संधि

( 2 ) मनुष्योपरि = मनुष्य + उपरि ( अ + उ = ओ ) = गुण स्वर संधि

( 3 ) विद्यालयडकृतः = विदया + अलडकृतः ( आ + अ = आ ) = दीर्घस्वर 

( 4 ) भवतीति = भवति + इति ( इ + ई = ई ) = दीर्घ स्वर संधि 

प्रश्न 6. हिन्दी में व्याख्या कीजिए

( क ) सतां सडगतिः सत्सङगतिः कथ्यते ।

अनुवाद - सज्जनों की संगति को सत्संगति कहते हैं ।

( ख ) सत्सडगति कथय किं न करोति पुंसाम् ।

अनुवाद - कहो सत्संगति कौन सा हित नहीं करती । ( कहो , सत्संगति मनुष्य के लिए क्या नहीं करती )

( ग ) दिक्षु तनोति कीर्तिम् ।

अनुवाद - कीर्ति सभी दिशाओं में फैलती है ।

( घ ) सत्सडगति श्रेयस्कराभवतीति ।

अनुवाद - सत्संगति श्रेयस्कर है ।

प्रश्न 7.  सत्सङ्गति पर संस्कृत में पाँच वाक्य बनाइए । 

उत्तर

          सत्सङगतिः

( 1 ) सतां सडगतिः सत्सडगतिः कथ्यते । 

( 2 ) यदि सज्जै : सह सडगतिः भवति , तर्हिनर : सज्जनः भवति 

( 3 ) सत्सडगेन मनुष्येणु बहवः गुणाः उद्भवन्ति ।.

( 4 ) सत्सडगेन मनुष्यं विवेकवान् श्रद्धावान शीलवान च भवति ।

( 5 ) अतः सतां सडगतिः श्रेयस्करा भवतीति ।

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