अध्याय 4 उद्योग एक परिचय
अभ्यास के प्रश्न
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
( 1 ) भारत कृषि प्रधान देश है।
( 2 ) उद्योग धंधे मानव , मशीन तथा विद्युत से संचालित होता है।
( 3 ) कुंभकार के लिए कच्चामाल मिट्टी है ।
( 4 ) मिट्टी से बने सजावटी समान को टेराकोटा कहते हैं।
( 5 ) मिट्टी का घड़ा , सुराही बनाना कुम्भकार का काम है।
( 6 ) ताना पर लगने वाला धागा कोरिया धागा कहलाता है।
( 7 ) रेशम के कीड़े शहतूत. के पेड़ों पर पाले जाते हैं ।
( 8 ) कोकून को उबालने से पहले उस पर पहटा लपेटा जाता है ।
प्रश्नों के उत्तर दीजिए
( 1 ) कच्चा माल किसे कहते हैं ?
उत्तर – उद्योग में कई वस्तुएँ तैयार होती हैं उन्हें तैयार करने के लिए जिन वस्तुओं का उपयोग होता है उन्हें कच्चा माल कहते कहते हैं ।
( 2 ) दस्तकारी किसे कहते हैं ?
उत्तर – लोगों के द्वारा बनाई जाने वाली सामानों को दस्तकारी काम कहते हैं ।
( 3 ) बाजार किसे कहते है ? उत्तर_बाजार किसी एक निश्चित दिन व निश्चित स्थान पर लगती है । जहाँ पर बहुत - सी वस्तुएँ अपेक्षाकृत सस्ते दामों पर मिल जाती है ।
( 4 ) नदी किनारे की चिकनी मिट्टी से ही बर्तन व अन्य सामान क्यों बनाए जाते हैं ?
उत्तर– चिकनी मिट्टी चूँकि मुलायम होती है , इसलिए कुम्भकार उसे अपनी पसंद की आकृति सरलतापूर्वक दे सकता । उसमें सूखने के बाद भी दरार नहीं आता अर्थात् बना हुआ सामान फटता नहीं है । चिकनी मिट्टी में रंग - रोगन करना भी आसान होता है , तथा रंग अधिक आकर्षक ढंग से उभरते हैं , उसमें साइनिंग आता है । इसलिए कुम्भकार काँप मिट्टी ( चिकनी मिट्टी ) का उपयोग बर्तन एवं अन्य सामान बनाने में करते हैं ।
( 5 ) मिट्टी के बर्तनों को बेचने के लिए क्या - क्या तरीके अपनाए जाते हैं ?
उत्तर– मिट्टी के बर्तनों को बेचने के तीन तरीके हैं—
( 1 ) स्वयं कुम्हार द्वारा- कुम्हार स्वयं अपने बनाए हुए बर्तनों व सामानों को निकटतम बाजार में ले जाकर बेचते हैं । इसमें सारा मुनाफा कुम्हार को ही होता है । आसपास के लोग कुम्भकार के घर पर ही आकर अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ ले जाते हैं ।
( 2 ) बिचौलियों द्वारा - बाजार में कुछ फूटकर विक्रेता होते हैं , जो स्थाई रूप से दुकान लगाते है , वे इन कुम्भकारों से आकर मिट्टी के बर्तन व अन्य सामग्री खरीद कर ले जाते हैं । यह स्मरणीय है कि बिचौलिए बर्तनों के कम दाम देते हैं क्योंकि वे इसमें अपना मुनाफा और सामान को लाने - ले जाने का दाम भी जोड़ते हैं । इस तरीके में कुम्भकार को कम लाभ होता है । हाँ , इतना अवश्य है कि उसे बाजार की खाक नहीं छाननी पड़ती , घर बैठे ही सामान बिक जाते हैं ।
( 3 ) सरकार द्वारा- सरकार द्वारा भी इन सामानों की बिकवाली के लिए समय - समय पर प्रदर्शनी , जगार मेला महोत्सव आदि का आयोजन किया जाता है , जिसमें इन सामग्रियों के अच्छे दाम मिल जाते हैं । हमारा छत्तीसगढ़ मिट्टी के सामान एवं इसी प्रकार की प्रदर्शनी के लिए प्रसिद्ध है ।
( 6 ) कुम्भकारों के काम में किस - किस तरह के परिवर्तन आए हैं ? अपने शब्दों में समझाइए ।
उत्तर –वर्तमान समय में कुम्भकारों के काम में आमूलचूल परिवर्तन आया है । अब वे प्रशिक्षण प्राप्त करके नयी कलाकृतियाँ बनाने लगे हैं । परम्परागत बर्तन और खिलौनों के अतिरिक्त सजावट के आकर्षक वस्तुओं के निर्माण से उन्हें अत्यधिक लाभ हुआ है । शहरों में भी उनके द्वारा निर्मित साजोसमान की विशेष माँग है । अब यह एक उद्योग का रूप ले चुका है , जिसे टेराकोटा उद्योग कहते हैं । इनके द्वारा निर्मित - हण्डी , पोरा , बैल , कलात्मक एवं सजावटी सामान , गमला , झाड़ - फानूस , लैम्प , घंटी , घोड़ा , हाथी , हिरण , मुखौटे आदि , जगार उत्सव व अन्य हाट बाजारों में खूब बिकने लगे हैं । वे अब अत्याधुनिक यंत्रों के सहयोग से उत्पादन करते हैं ।
( 7 ) बुनकर परिवारों को कोसा फल कहाँ से प्राप्त होता है ?
उत्तर– बुनकर परिवार कोसे के लिए शहतूत तथा इसी तरह के अन्य पेड़ों पर रेशम के कीड़े पालते हैं । कीड़ों की इल्लियाँ शहतूत के पत्तों को खाकर अपने चारों ओर अपनी लार से धागों के रूप में एक खोल तैयार करती हैं । इस खोल को कोसा फल या कोकून कहते हैं । इसी कोकून से रेशम के धागे तैयार करते हैं । ठेकेदारी पद्धति में ठेकेदार द्वारा कच्चा माल ( कोसा व अन्य सामग्री उपलब्ध कराया जाता है
( 8 ) बुनकर कोसे का कपड़ा किस प्रकार बनाता है ?
उत्तर– जब भोला को बड़े व्यापारी से कपड़ा बनाने का आर्डर और कोसा फल भरा बोरे के साथ धागा मिला तो वह उसे लेकर घर आया । दूसरे दिन उसकी पत्नी ने अच्छे कोसे का फल छाँटकर उस पर पहटा ( पेस्ट ) लगाया और एक मिट्टी के बर्तन में उन फलों का एक लीटर पानी में 10 ग्राम कपड़ा धोने वाला सोडा मिलाकर उबालने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दिया । दो - तीन घंटे उबालने के बाद उसे साफ पानी से इतना धोया कि ऊपर का चिपचिपा पदार्थ पूरा निकल गया और कोसा धागा निकालने लायक बन गया । कोसे को सुखाकर उसे गीले कपड़े में लपेटकर रख दिया । दोपहर को धागा निकालने का काम शुरू हुआ । पेस्ट को निकालने के बाद 5 कोसे को एक प्लेट में रखकर , एक - एक धागा निकाली और अपने जांघ पर एक साथ रगड़कर नटवा पर धागा लपेटने लगी । दूसरे दिन , नटवे पर लपेटे धागे को चरखे की मदद से बॉबिन पर चढ़ाया गया । अब भोला अपने करघे पर कोसा का धागा बाँधा , बुनाई के लिए बाना तैयार किया । और शुरू हो गया कपड़ा बनाने का काम । भोला को एक थान कपड़ा बुनने में 6 से 8 दिन का समय लगा । इस प्रकार भोला के परिवार के लोगों ने कपड़ा तैयार किया ।
( 9 ) छोटा व्यापारी क्या - क्या काम करता है ?
उत्तर–बड़े व्यापारी इन छोटे व्यापारियों को आर्डर देते हैं । छोटे व्यापारी स्थानीय बुनकरों से सम्पर्क कर उन्हें कम दाम पर कपड़े बुनने का आर्डर देते हैं । साथ ही एडवान्स में पैसे , कोसा फल एवं धागे देता है । जब कपड़े तैयार हो जाते हैं तो वे उसे बड़े व्यापारी तक पहुँचा देते हैं और उनसे कमीशन लेते हैं । इस प्रकार छोटे ' व्यापारियों को इससे दोहरा लाभ तथा बुनकरों का शोषण होता है ।
( 10 ) यदि कोसा उद्योग से छोटे व्यापारी हट जाएँ तो बुनकरों के काम में क्या परिवर्तन आएगा ?
उत्तर- छोटे व्यापारी ( बिचौलिए ) बड़े व्यापारी और बुनकरों के बीच की कड़ी है । वह दोनों को लाभ पहुँचाने का झांसा देकर खुद दोहरा लाभ कमाता है । यदि बुनकरों का सीधा सम्पर्क बड़े व्यापारियों से होता है तो इससे दोनों पक्ष को लाभ होगा । बुनकरों को उसी काम का अधिक पारिश्रमिक मिल जायेगा , जिससे के प्रति उनका उत्साह बढ़ेगा और उत्पादन में भी वृद्धि हो अधिक आय से बुनकर आर्थिक रूप से सक्षम हो सकेंगे तथा मशीनों का उपयोग भी कर सकेंगे साथ ही कलात्मक विकास है लिए प्रशिक्षण भी ले सकेंगे । इससे उनकी कार्यक्षमता व गुणवस में वृद्धि होगी ।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्न
1. नीचे दी गई वस्तुओं में से खेती से प्राप्त एवं मशीनों से प्राप्त वस्तुओं की अलग - अलग सूची बनाइये शक्कर , डबलरोटी , गेहूँ , गन्ना , सेव , कपड़ा , कपास , लकड़ी , आलू , बाँस , टोकरी , बाल्टी , टी . व्ही . , मोबाइल , कम्प्यूटर , रेलगाड़ी , आम , शहतूत , पोहा , कागज , प्लास्टिक के सामान ।
उत्तर- खेती से प्राप्त वस्तुएँ - गेहूँ , गन्ना , सेव , कपास , लकड़ी , आलू , बाँस , टोकरी , आम , शहतूत ।
मशीन से प्राप्त वस्तुएँ– शक्कर , डबल रोटी , कपड़ा , बाल्टी , टी . व्ही . , मोबाइल , कम्प्यूटर , रेलगाड़ी , पोहा , कागज , प्लास्टिक के सामान ।
प्रश्न 2. कुम्भकार को कच्चा माल प्राप्त करने के लिए क्या - क्या समस्याएँ आ रही हैं ?
उत्तर- कुम्भकारों के लिए मिट्टी ही कच्चा माल है । मुलायम और चिकनी मिट्टी दूर - दूर तक नहीं मिलती क्योंकि इस समय नदियों में अधिकांश मात्रा में प्लास्टिक पन्नी के कारण अच्छी मिट्टी नहीं मिल पा रही है । अब कुम्भकार गाँव में जहाँ सरकारी जमीन है , वहाँ से मिट्टी खोदकर लाते हैं । अथवा जमीन के मालिकों से प्रति गाड़ी की दर से मिट्टी खरीदते हैं ।
प्रश्न 3. महानदी की सहायक नदियाँ कौन - कौन सी हैं ?
उत्तर- महानदी की सहायक नदियों के नाम हैं- जोंक नदी शिवनाथ , अरपा , मांड नदी , हाप नदी , खारून नदी ।
प्रश्न 4. स्वयं का सामान बेचना और व्यापारी को बेचन में क्या अंतर है ?
उत्तर–स्वयं का सामान बेचने से आशय है कि इसमें उत्पाद का निर्माता स्वयं बाजार ले जाकर अपने उत्पाद को बेचता है । इससे सामान निर्माता को अधिकतम लाभ होता है । व्यापारी को बेचने से व्यापारी ( बिचौलिया ) सामान को कम दाम पर सामान खरीदता है क्योंकि इसमें वह सामान का परिवहन व्यय और अपना लाभ जोड़ता है । इस प्रकार व्यापारी को निर्माता कम दाम में ही सामान बेचना पड़ता है । स्पष्ट है कि स्वयं ( निर्माता ) द्वारा बिक्री से उसे क्रेता व विक्रेता ( निर्माता ) दोनों का लाभ है , जबकि व्यापारी द्वारा बिक्री में व्यापारी को ही ज्यादा लाभ होता है ।
प्रश्न 5. कुम्हार के अतिरिक्त छत्तीसगढ़ में अन्य कौन कौन से दस्तकार हैं ?
उत्तर – कुम्भकार के अतिरिक्त अन्य दस्तकार हैं - जुलाहा , कपड़े पर छपाई करने वाले रंगरेज , बाँस की टोकरियाँ एवं अन्य चीजें बनाने वाले बंसोड़ , बर्तन बनाने वाला कसेरा , लोहे का सामान बनाने वाला लोहार , गद्दे बनाने वाला पिंजारे आदि ।
प्रश्न 6. यदि सभी कुम्हार मशीन की चाक उपयोग करने लगे तो इसका क्या असर होगा ?
उत्तर— सभी कुम्हारों द्वारा मशीनी चाक का उपयोग एक क्रांतिकारी कदम कहा जा सकता है । इससे उनकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी , कलात्मक उत्पादों को बनाने में आसानी होगी तथा उत्पादन लागत भी कम पड़ेगा । वे अपने उत्पाद का अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकेंगे । उपभोक्ताओं को भी सस्ते दामों पर उसकी आवश्यकता की वस्तुएँ उपलब्ध हो जायेंगी । कुम्हारों की माली हालात इससे सुधरेगी ।
प्रश्न 7. क्या कुम्भकारों का धंधा कम चलने लगा है , कारण सहित समझाइये ।
उत्तर- हाँ , कुम्भकारों का धंधा कम चलने लगा है , इसके कारण निम्न हैं -
( 1 ) कुम्हारों को जो परम्परागत ढंग से सामान बनाने में लगे हैं , उन्हें बाजार में उपलब्ध फैशनुबल सामानों से कड़ी स्पर्धा करनी पड़ रही है । लोग आकर्षक सामान खरीदना चाहते हैं ।
( 2 ) ग्रामीण कुम्हारों की आर्थिक स्थिति अत्यंत सोचनीय है , इसलिए कि वे अत्याधुनिक यंत्रों को खरीद नहीं सकते , वे सपरिवार इसी धंधे में लगे होते हैं , उनका पारिश्रमिक भी वे निकालना चाहते हैं , जिससे सामान का मूल्य बढ़ जाता है और लोग खरीदना नहीं चाहते हैं।
( 3 ) वर्तमान समय में ग्राहक सस्ता , सुन्दर और टिकाऊ सामान खरीदना पसंद करते हैं । कुम्हारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के उत्पाद क्षणभंगुर और कीमती होने के कारण उपभोक्ता इसे नहीं खरीदते ।
( 4 ) विज्ञापनों का अभाव भी इन उत्पादों की बिक्री को प्रभावित करता है । चूँकि ये वर्ग निर्धन हैं , अतः विज्ञापन में खर्च नहीं कर सकते हैं ।
( 5 ) सरकारी उदासीनता के कारण भी कुम्भकारों के धंधे चौपट होने की स्थिति में है । साल में दो - चार प्रदर्शनी लगा देने मात्र से इस धंधे को गति नहीं मिल सकती ।
( 6 ) कुम्हारों का बड़े स्तर पर कोई संगठन का न होना भी इस धंधे पर बुरा असर डाल रहा है । यदि कोई निजी संस्था या संगठन इस दिशा में ( कुम्हारों के उत्पाद के बिकवाली के लिए ) पहल करे तो सुधार संभव है ।
प्रश्न 8. दस्तकारी के काम की क्या - क्या विशेषताएँ हैं ? उत्तर– दस्तकारी के काम की विशेषताएँ निम्न हैं -
( 1 ) यह परम्परागत काम है , जिसे पूरे परिवार के लोग मिलकर करते हैं ।
( 2 ) दस्तकारी प्रायः वंशानुगत सीखा जाता है ।
( 3 ) इसके लिए कच्चा माल स्थानीय स्तर पर आसानी से उपलब्ध होता है ।
( 4 ) दस्तकारी अत्यंत श्रम साध्य काम है ।
( 5 ) इसके लिए कम धन की आवश्यकता होती है ।
( 6 ) बाजार निकट में उपलब्ध होने से दस्तकारों को लाभ होता है ।
( 7 ) विद्यमान प्रतिस्पर्धा दस्तकारों की सबसे बड़ी चुनौती है ।
( 8 ) दस्तकारी माल का मूल्य व रकम स्वयं निर्धारित करता है तथा लाभ - हानि का स्वयं भोक्ता होता है ।
प्रश्न 9. मिट्टी के बर्तन कैसे बनाए जाते हैं ?
उत्तर- मिट्टी के बर्तन बनाने में 10-12 घंटे लग जाते हैं । प्रातः काल परिवार के सदस्य मिट्टी लाकर उसे चूरा बनाते हैं । उससे कंकड़ - पत्थर निकाल कर छनी हुई मिट्टी को प्रतिदिन शाम को भिगाते हैं । गीली मिट्टी को कूट - कूट कर नरम बनाते हैं । सुबह मिट्टी को घूमते हुए चाक पर रखकर एक निश्चित आकार देते हैं । फिर इसे धूप में सूखा देते हैं । सूखे हुए बर्तन व सामान को आग की भट्टी ' आवा ' में पकाते हैं । पके हुए बर्तन को भिगाकर रंग - रोगन करते हैं । इस प्रकार मिट्टी के बने बर्तन व सामान तैयार किया जाता है ।
प्रश्न 10. छत्तीसगढ़ के कुम्हारों की दशा कैसे सुधारी जा सकती है ?
उत्तर- छत्तीसगढ़ के कुम्हारों की मूल समस्या है- आसानी से मिट्टी उपलब्ध न होना , आर्थिक तंगी , सामानों के उचित दाम न मिलना , निकट बाजार का न होना , आधुनिक उपकरणों का अभाव , अन्य उत्पादों के साथ प्रतियोगिता- इन समस्याओं को दूर करने के लिए निम्न प्रयास किए जा सकते हैं –
( 1 ) मिट्टी की समस्या को दूर करने के लिए भूमिहीन कुम्हारों को सरकार द्वारा भूमि मुहैया करायी जानी चाहिए अथवा लीज पर मिट्टी उपलब्ध करना चाहिए ।
( 2 ) आर्थिक संकट से कुम्भकारों को मुक्त करने के लिए आसान किश्तों व कम ब्याज दर में ऋण दिया जाना चाहिए , जिससे उसे साहूकारों व व्यापारियों के सामने अधिक ब्याज दर पर रुपये लेने को मजबूर न होना पड़े ।
( 3 ) सामानों की बिक्री के लिए आस - पास बाजारों की व्यवस्था की जानी चाहिए , जहाँ वे अपना समान उचित दाम में बेचकर मुनाफा प्राप्त कर सके ।
( 4 ) कुम्हारों को बाजार नहीं मिलने के कारण व बिचौलियों के हाथों अपने उत्पाद कम मूल्य पर बेचने को विवश रहते हैं , ऐसे में यदि सरकार द्वारा मूल्य - निर्धारण कर दिया जावे तो कुम्हारों को लाभ पहुँचाया जा सकता है ।
( 5 ) वर्तमान वैज्ञानिक युग में भी वे परम्परागत चाक के द्वारा ही सामान बनाते हैं , यदि उन्हें इलेक्ट्रानिक उपकरण उपलब्ध कराया जाय तो उनके उत्पादन में वृद्धि होगी , लागत मूल्य भी कम होगा और उन्हें इससे लाभ हो सकेगा । उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाना अत्यंत आवश्यक है ।
( 6 ) अन्य उत्पादों से प्रतिस्पर्धा कम करने के लिए सरकार को प्लास्टिक के समानों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि यह पर्यावरण के लिए खतरा होने के साथ विश्व की प्रमुख समस्या बन गई है ।
( 7 ) समय - समय पर सरकारी स्तर पर मेला महोत्सव का आयोजन करना चाहिए तथा कुम्भकारों का सम्मान भी करना चाहिए , जिससे उनका मनोबल बढ़े और अपने कार्य के प्रति सम्मान के भाव जागृत हो ।
( 8 ) निजी संगठनों को भी इस दिशा में सकारात्मक पहल करना चाहिए ।
प्रश्न 11. उद्योग लगाने ( स्थापित करने ) के लिए अनुकुल दशाएँ बताइये ।
उत्तर – उद्योग स्थापित करने के लिए निम्न सुविधा आवश्यक है-
( 1 ) कच्चामाल आसानी से उपलब्ध हो ।
( 2 ) सस्ते मजदूर सरलतापूर्वक मिले ।
( 3 ) यातायात की व्यवस्था हो ।
( 4 ) विद्युत् की व्यवस्था हो ।
( 5 ) बाजार निकट हो , जिससे माल खपाया जा सके ।
प्रश्न 12. दस्तकार किसे कहते हैं ?
उत्तर- जब वस्तु का उत्पादन व्यक्ति स्वयं हाथों से करता है , मशीन ( कारखाना ) का उपयोग नहीं करता तो उसे दस्तकार कहते हैं । जैसे- कुम्हार द्वारा मटका , मोची द्वारा जूता आदि ।
प्रश्न 13. कोसे का धागा बनाने वालों को पैर में क्या तकलीफ होती है ?
उत्तर- कोसे का धागा बनाने वालों को पैरों में तकलीफ होती है । उनके जाँघों में लाल - लाल निशान पड़ जाते हैं तथा जाँघों की चमड़ी कठोर पड़ जाती है ।
प्रश्न 14. स्व - सहायता समूह क्या है ? इसके कार्य बताइये ।
उत्तर- किसी व्यवसाय को करने के उद्देश्य से कुछ लोग ( निश्चित संख्या ) द्वारा एक समूह तैयार किया जाता है , जो स्वयं धन लगाकर व्यवसाय को संचालित करते हैं , इस प्रकार के समूह को स्व - सहायता समूह कहा जाता है । सरकार द्वारा समय - समय पर नियमानुसार इन सब स्व - सहायता समूह की मदद की जाती है ।
स्व - सहायता समूह के कार्य - स्व - सहायता समूह अपने व्यवसाय के लिए आवश्यक संसाधन जुटाता है । उत्पादन वृद्धि के लिए मशीनों की व्यवस्था करता है । वह निर्धारित मूल्य पर अपने लिए मशीनों की व्यवस्था करता है । वह निर्धारित मूल्य भी स्व सहायता समूहों के उत्पाद के क्रय - विक्रय की व्यवस्था की गई है ।
प्रश्न 15. ठेकेदारी प्रथा में बड़े व्यापारियों को क्या सुविधा प्राप्त हैं ?
उत्तर- ठेकेदारी प्रथा में बड़े व्यापारियों को दो सुविधाएँ प्राप्त है एक , उसे कपड़ा बनाने या किसी काम के लिए कोई व्यवस्था अपने कारखाने के अन्दर नहीं करनी पड़ती है तथा किसी किस्म के औजार आदि भी नहीं देने पड़ते हैं । दूसरे , कारखानों में रखे गए मजदूरों को फैक्ट्री कानून के नियमों के अनुसार वेतन एवं सुविधाएँ मिलने का हक बनता है । जबकि इस तरह ठेकेदारी प्रथा के अन्दर काम करवाने में बड़े व्यापारी इन्हें अपना मजदूर मानने के लिए तैयार नहीं होते हैं और फैक्ट्री कानून से बच जाते हैं । इस प्रकार बुनकरों को मेहनत के बदले जो कानूनी सुविधाएँ मिलनी चाहिए , उससे वे वंचित रह जाते हैं ।
प्रश्न 16. भोला अपने द्वारा बुने हुए कपड़ों को स्वतंत्र रूप से क्यों नहीं बेच सकता ?
उत्तर- बड़े शहरों में कोसा के कपड़े ऊँचे दामों में बिकते हैं , उनके बारे में न भोला को जानकारी है और न ही वहाँ तक पहुँच पाता है । मजदूरी कम मिलने के कारण भोला जैसे - तैसे अपने परिवार का भरण - पोषण कर पाता है । इसलिए वह स्वतंत्र रूप से यह व्यापार नहीं कर पाता ।
प्रश्न 17. ठेकेदारी प्रथा में भोला जैसे परिवारों पर क्या असर होता है ? अपने शब्दों में समझाइए ।
उत्तर- ठेकेदारी प्रथा में ठेकेदार द्वारा कपड़ा बुनने का ठेका ( आर्डर ) दिया जाता है । साथ ही कपड़ा बुनने के लिए रॉ मटेरियल के साथ कुछ एडवांस भी दिया जाता है । चूँकि ठेकेदार यह जानता है कि काम करना बुनकरों की मजबूरी है , इसलिए वह काम का न्यूनतम मूल्य ही देता है । बुनकर रात - दिन पसीना बहाता है , लेकिन उससे प्राप्त मजदूरी से बड़े मुश्किल से उसके परिवारजनों का भरण - पोषण ही हो पाता है । भोला जैसे तमाम बुनकर परिवारों की आज यही दशा है कि वे दुनिया को सुंदर बनाने के लिए , दुनिया वालों को सुंदर बनाने के लिए आकर्षक कपड़े तैयार करता है , और अंत में उसे ही दो गज कपड़ा नसीब नहीं हो पाता ।
प्रश्न 18. एक बुनकर परिवार कारखानों में काम करता है और दूसरा घर पर दोनों के काम करने के तरीकों में क्या अंतर हो सकता है ?
उत्तर- कारखानों में काम के तरीके- कारखानों में कार्य करने का समय निर्धारित होता है अर्थात वहाँ 8 घंटे कार्य करना ही होता है । कारखाने में कार्य करने के लिए विशेष प्रशिक्षण दक्षता आवश्यक है । कारखाने में सभी आवश्यक सामग्री उपलब्ध रहता है । मशीनें उपलब्ध रहती हैं , अतः कार्य कुशलतापूर्वक व शीघ्र पूर्ण हो जाता है । कारखाने में अलग - अलग कार्य के लिए अलग अलग व्यक्ति नियुक्त होते हैं । घर में कार्य के तरीके - घर में काम करने वालों के लिए समय का कोई बंधन नहीं होता , वह जब तक चाहे काम करे , न चाहे न करे । इसके लिए किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती । परिवार के सारे लोग काम में हाथ बँटाते हैं और करते करते सीखते हैं । चूँकि घर में पर्याप्त रॉ मटेरियल नहीं होता , न ही मशीनें होती हैं , इसलिए अधिक परिश्रम करने पर भी काम , कम होता है । कारखाने की तरह यहाँ हरेक काम के लिए अलग - अलग व्यक्ति नहीं होते बल्कि सभी मिल - बाँटकर कार्य पूर्ण करते हैं । यहाँ फैक्ट्री नियमों के तहत कोई सुविधा भी नहीं मिलती ।
प्रश्न 19. एक सुझाव है कि बुनकरों की एक समिति हो जो बुनकरों के कपड़ों को खरीदे और बड़े शहरों में बेचे । इस बारे में अपना विचार लिखिए ।
उत्तर – बुनकर समिति का गठन एक उत्तम सुझाव है । यदि इस प्रकार की कोई समिति गठित कर बुनकरों से कपड़े खरीदकर बड़े शहरों में बेचा जाय तो इससे विशेष लाभ होगा । समिति गठन से बुनकरों को बिचौलियों के हाथों की कठपुतली नहीं बनना पड़ेगा । उसे अपने उत्पाद के लिए ग्राहक ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं होगी तथा समिति द्वारा उसे कपड़े का उचित दाम भी मिल सकेगा । चूँकि समिति बुनकरों द्वारा गठित होगी , इसलिए वह बुनकरों के हित की रक्षा करेगी । समय - समय पर अपनी समस्याओं को ठोस ढंग से सरकार के समक्ष रख सकेगी व पूरा कराने के लिए दबाव भी बना सकती है । समिति द्वारा बुनकरों के लिए प्रशिक्षण का आयोजन भी किया जा सकता है , जिससे परम्परागत ढंग से कपड़े बुनने वाले बुनकरों को नये तकनीकों व परिवर्तनों की जानकारी मिल सकेगी । जिससे वे अपने काम करने के तरीके में आवश्यक सुधार कर सकेंगे । बुनकरों का यदि सम्मेलन समिति द्वारा आयोजित की जाती है तो इससे बुनकरों को एक मंच मिलेगा , जहाँ वे एक - दूसरे के काम करने के ढंग से काफी कुछ सीख पाएँगे । समिति के द्वारा बुनकरों को न्यूनतम ब्याजदर में कर्ज भी उपलब्ध करायी जायेगी जिससे उसे सेठ - साहूकारों की चंगुल से मुक्ति मिल जाएगी । इस प्रकार मेरी राय में बुनकर समिति का गठन बुनकरों के हित में वर्तमान परिदृश्य में बेहतर विकल्प है ।
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