रस किसे कहते हैं / RAS IN HINDI/रस कितने प्रकार के होते हैं /RAS KE PRAKAR/

 रस किसे कहते हैं - RAS IN HINDI

रस की परिभाषा



रस किसे कहते हैं - काव्य के आस्वाद से जो अनिर्वचनीय आनंद प्राप्त होता है उसे रस कहते हैं। काव्य में रस का महत्व - जिस प्रकार प्राण के बिना शरीर का कोई महत्व नहीं होता उसी प्रकार रस के बिना। काव्य रस उत्तम काव्य का अनिवार्य गुण है। 

रस का शाब्दिक अर्थ आनंद  होता है। काव्य को पढ़ने से हमें जो आनंद की अनुभूति होती है। उसे रस कहते है। रस काव्य का मूल तत्व या उसका प्राण होता है। जिसके बिना काव्य मात्र एक पद्य बनकर रह जाता है। रस किसी भी उत्तम काव्य का अनिवार्य गुण है। 

परिभाषा – कहानी , कविता या उपन्यास , नाटक को पढ़ने ,सुनने या देखने से पाठक , श्रोता या दर्शक को जिस अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है। वह रस कहलाता है। 

रस को "ब्रह्मानंद सहोदर या काव्य की आत्मा" कहा जाता है।

 आचार्य भरत मुनि जी के द्वारा–

"विभानुभाव संचारी भाव व्यभि संयोगाद्रस निष्पति:।"

" रसात्मकम्  वाक्यम् काव्यम्।"

 इसे भी पढ़े हिंदी व्याकरण रस 

रस की निष्पत्ति - सहृदय के हृदय में स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव संचारी भाव के साथ सहयोग होता है तब रस की निष्पत्ति होती है। 

रस के अंग - 

रस के चार अंग होते है जो निम्नलिखित है -

विभाव

अनुभाव

संचारी भाव

स्थायी भाव

1. स्थाई भाव - सहृदय के हृदय में जो भाव स्थाई रूप से विद्यमान होते हैं। उसे स्थाई भाव कहते हैं। इसकी संख्या 10 होती है। रति, हास, क्रोध, भय, उत्साह, आश्चर्य, शोक, घृणा, निर्वेद, वात्सल्य।

2. विभाव - स्थाई भाव के होने के कारण को विभव कहते हैं। विभव दो प्रकार के होते हैं। 

1. आलंबन विभाव वह कारण जिस पर भाव और लंबित होते हैं उन्हें आलंबन विभाव कहते हैं। 

2. उद्दीपन विभाव जो आलंबन द्वारा उत्पन्न भाव को उद्दीप्त करते हैं उसे उद्दीपन विभाव कहते हैं। 

3. अनुभव आश्रय की व्याह्य चेष्टाओ को अनुभव कहते हैं। 

4. संचारी भाव जो भाव सहृदय के हृदय में अस्थाई रूप से विद्यमान होते हैं उन्हें संचारी भाव कहते हैं। जैसे स्मृति, शंका, आलस्य, चिंता आदि इनकी संख्या 33 होती है।

स्थाई भाव और संचारी भाव में अंतर  

स्थाई भाव की संख्या 10 होती है जबकि संचारी भाव की संख्या 33 होती है। स्थाई भाव उत्पन्न होकर रसभरी पार्क तक बने रहते हैं जबकि संचारी भाव क्षण प्रतिक्षण बदलते रहते हैं।

रस कितने प्रकार के होते हैं  RAS KE PRAKAR

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रस काव्य की आत्मा कहलाती है। जिस प्रकार शरीर का महत्व आत्मा के बिना कुछ नहीं है। उसी प्रकार बिना रस के कोई भी काव्य अधूरा होता है। अर्थात शब्द को हम शरीर मान सकते है और रस को आत्मा। 

रस कितने प्रकार के होते हैं

रस के दस प्रकार होते है जो निम्नलिखित है - 

रस       स्थायी भाव

श्रृंगार रस - रति(प्रेम)

हास्य रस - हास 

शान्त रस - निर्वेद

करुण रस - शोक

रौद्र रस - क्रोध

वीर रस - उत्साह

अद्भुत रस - आश्चर्य

वीभत्स रस - घृणा

भयानक रस - भय

वात्सल्य रस - स्नेह

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1. श्रृंगार रस

रति का सामान्य अर्थ है प्रीति जहाँ पर नायक और नायिका अथवा स्त्री व पुरूष के प्रेम के चेष्टाओं के क्रियाकलापों का श्रृंगारिक वर्णन हो वहाँ पर श्रृंगार रस होता है।

Video श्रृंगार रस

उदाहरण: 

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय।

सौंह करै, भौंहनी हंसे, दैन कहैं नटी जाए।।

श्रृंगार रस दो प्रकार के होते हैं।

संयोग श्रृंगार जहां पर नायक नायिका के संयोग या मिलन का वर्णन हो वहां संयोग श्रृंगार होता है। 

वियोग श्रृंगार जहां पर नायक नायिका के वियोग का वर्णन हो वहां वियोग श्रृंगार होता है। 

2. हास्य रस

जहाँ पर किसी व्यक्ति की विचित्र वेश भूषा , विकृति, आकृति, क्रियाकलाप, रंग रूप , वाणी एवं व्यवहार को देखकर , सुनकर ,पढ़कर हृदय में हास का भाव उत्पन्न होता है वहां पर हास्य रस होता है।

उदाहरण:

मैं महावीर हूं, पापड़ को तोड़ सकता हूँ। 

अवसर आ जाए तो, कागज को मरोड़ सकता हूँ।।

3. करुण रस

जहाँ पर किसी प्रिय जन या ईष्ट के कष्ट , शोक, दुख, मृत्यु जनिक प्रसंग के कारण अथवा किसी अनिष्ट के आशंका के फलस्वरूप हृदय में पीड़ा या क्षोभ का भाव उत्पन्न होता है वहाँ पर करुण रस की अभिव्यंजना  होती है। यह अभिव्यंजना किसी वस्तु व्यक्ति या प्राणी के प्रति कारुणिक भाव उत्पन्न होने पर भी हो सकती है।

उदाहरण:

सब बंधुन को सोच तजि, तजि गुरुकुल को नेह।

हा सुशील सूत! किमी कियो अनंत लोक में गेह।।

4. वीर रस

जहाँ पर हृदय में ओज उमंग उत्साह का भाव उत्पन्न करने वाले प्रसंग वर्णित हो वहाँ पर वीर रस होता है। यह भाव शत्रुओं के प्रति विद्रोह अधर्म और अत्याचार के नाश असहायों को कष्ट से मुक्ति दिलाने आदि में अभिव्यंजित होती है।

उदाहरण:

द्वार बलि का खोल, चल, भूडोल कर दें। 

एक हिम-गिरि एक सिर का मोल कर दें।। 

करुण रस वीर रस का वीडियो देखने के लिए click here

5. रौद्र रस

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जहाँ पर  किसी असहाय वचन , अपमान जनक क्रियाओं के फलस्वरूप हृदय में क्रोध का भाव उत्पन्न हो वहाँ रौद्र रस होता है। इस रस की अभिव्यंजना किसी प्रिय य्या श्रद्धेय व्यक्ति के प्रति अपमानजनक असहनीय व्यवहार के प्रतिशोध में होती है।

उदाहरण:

रे बालक ! कालवस बोलत, रोही न संभार । 

धनुहि सम त्रिपुरारि धनु , विदित सकल संसार ॥ 

6. भयानक रस

 जहाँ पर भयानक वस्तुओं य्या दृश्यों के प्रत्यक्षीकरण के फलस्वरूप हृदय में जो भय का भाव उत्पन्न होता हो वहां पर भयानक रस की अभिव्यंजना  होती है।

उदाहरण:

नभ ते झपटत बाज लखि, भूल्यो सकल प्रपंच। 

कंपित तन व्याकुल नयन, लावक हिल्यो न रंच।। 

7. अद्भुत रस

 जहाँ पर किसी के अलौकिक अद्भुत, आश्चर्य जनक वस्तुओं को देखकर हृदय में विस्मय का भाव जागृत हो वहाँ पर अद्भुत रस होता हैं।

उदाहरण:

हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग । 

सिगरी लंका जर गई गए निशाचर भाग ॥ 

8. वीभत्स रस

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 जहाँ पर किसी अप्रिय अरुचिकर घृणास्पद वस्तुओं प्रसंगों का वर्णन हो वहां पर वीभत्स रस होता है।

उदाहरण:

मारहिं काटहिं धरहिं पछारहिं। 

सीस तोरि सीसन्हसन मारहिं।।

9. शांत रस

 जहाँ पर भक्ति, नीति, ज्ञान, वैराग्य, धर्म, दर्शन , तत्व या सांसारिक नश्वरता संबंधी प्रसंगों का वर्णन हो वहां शांत रस होता है ।

 सहृदय  के हृदय में स्थित निर्वेद नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभाव संचारी भाव के साथ संयोग होता है तो उसे शांत रस कहते हैं। उदाहरण:

पानी केरा बुदबुदा अस मानुस की जात। 

देखत ही छिप जाएगा ज्यों तारा परभात।।

10. वात्सल्य रस

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 जहाँ पर अपने से छोटों के प्रति स्नेह का भाव अभिव्यंजित हो वहाँ पर वात्सल्य रस होता है।  इस स्नेह के भाव की उत्पत्ति  छोटों की कौतुक, क्रीड़ा आदि के रूप व्यक्त होती है। 

उदाहरण:

धूलि भरे अति शोहित स्याम जू , तैसी बनी सर सुन्दर चोटी । 

काग के भाग बड़े सजनी , हरी हाथ से ले गयो माखन रोटी ॥


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