चंद्रशेखर आजाद/AZAD/जयंती पर विशेष

चंद्रशेखर आज़ाद 


 चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के ग्राम भाबरा में हुआ था। 
था।  उनकी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई थी।  जब वह छोटे थे तब, 1919 में जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार से वह बहुत आहत हुए  थे। इसी घटना से उनमें राष्ट्रीयता की भावना का उदय संभव हुआ और उनके हृदय  में देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने कीज्वाला धधकी ।  उन्हें जल्द ही एक सुनहरा मौका मिला। महात्मा गांधी ने 1920 में  जब अंग्रेजों के विरोध में असहयोग आंदोलन चलाया तब चंद्रशेखर आज़ाद ने भी इस आंदोलन में काम किया।

 जब वे एक विरोध प्रदर्शन के दौरान पकड़े गये, तो उसने खुद को आज़ाद  और मुक्त के नाम से संबोधित किया।  इस प्रकार, "आजाद"  शब्द उपनाम  के रूप में तब से उनके नाम के साथ जुड़ा हुआ है।

 सजा के विरोध में भी उसकी अवज्ञा करना देशवासियों  के लिए प्रेरणादायक थी।  उन्होंने खुद से एक वादा भी किया कि उन्हें फिर से कभी नहीं पकड़ा जाएगा और आज़ाद हवा में सांस लेते हुए मर जाएंगे।



जल्द ही, आजाद लाहौर में काकोरी ट्रेन डकैती और अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या जैसी कई महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ प्रमुखता से उनका नाम सामने आया ।

 काकोरी मामला ब्रिटिश शस्त्रागार पर छापा मारने का एक प्रयास था जबकि सॉन्डर्स गलती से मारे गए थे क्योंकि आजाद साइमन कमीशन विरोध प्रदर्शन के दौरान लाजपत राय के सिर पर घातक प्रहार करने वाले व्यक्ति को मारना चाहते थे।

 एक संगठित गठन की आवश्यकता को महसूस करते हुए, उन्होंने  हिंदुस्तान सोशलिस्ट की स्थापना की
 रिपब्लिकन एसोसिएशन ’।  अपने श्रेय के लिए, वह राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त आदि जैसे उस समय के सर्वश्रेष्ठ युवा दिमागों की भर्ती करने में सक्षम थे।

 भाइयों के इस दल में  ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के प्रति आक्रामकता  देखी गई । उन्होंने भारतीयों के प्रति हिंसा और आक्रामकता के मामलों में शामिल अधिकारियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया।

 ब्रिटिश शासन ने चंद्रशेखर आज़ाद को एक वांछित अपराधी और आतंकवादी घोषित किया।  उनका हर जगह पीछा किया गया था किन्तु ज्यादातर मौकों पर वे बाहर निकलने में सक्षम थे।  हालाँकि, 1931 में, वह अपने ही एक साथी के द्वारा  धोखे का खेल खेला गया, जिसने पुलिस को उसके ठिकाने का पता बताया।और पुलिस ने उनको घेर लिया।

 आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में थे, जब उनपर पुलिस द्वारा  घेरा गया था।  आज़ाद  ने साहस से उनका सामना किया । इस प्रक्रिया में कुछ अधिकारियों को मारकर अपनी स्थिति का बचाव करने की भी भरपूर कोशिश उन्होंने की।

 हालाँकि,  जब उन्होंने अपने को असमर्थ देखातो उन्होंने अधिकारियों द्वारा फिर से कभी पकड़े नहीं जाने की प्रतिज्ञा  का मान रखने के लिए खुद को गोली मार ली।

 उनकी मृत्यु के बाद, संगठन ने भगत सिंह, राजगुरु, आदि जैसे अपने अन्य दिग्गजों को  भी खो दिया । 

 उन्हें हमेशा उस व्यक्ति के रूप में याद किया जाएगा, जिसने अपने जीवन से अधिक  देश की स्वतंत्रता का मूल्य निर्धारित किया था। जिनके लिए स्वहित से बढ़कर देशहित था।ऐसे देशभक्त को सम्पूर्ण भारत सदैव याद करेगा।
उनको शत् शत् नमन।

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