हिन्दी भाषा में बच्चों का सक्षम व सक्षम प्लस होना आज समय की माँग है ।”



आज हम देख रहे हैं कि किस प्रकार हरियाणा शिक्षा विभाग विद्यालयों में सक्षम व सक्षम प्लस के लिए पूरा प्रयास कर रहा है । अधिकारियों से लेकर विद्यालय के शिक्षक व बच्चे एक ही बात पर जुटे हुए हैं कि किस प्रकार बच्चों को सक्षम बनाया जाए । बच्चे आठवीं पास कर लेते हैं लेकिन उन्हें हिन्दी भाषा ही अच्छी तरह पढ़नी व लिखनी नहीं आती । आज समय आ गया है कि इस पर मंथन किया जाए और एक ऐसी शिक्षण रणनीति बनाई जाए , जिससे प्राथमिक स्तर पर ही बच्चों की हिन्दी भाषा सुदृढ़ हो सके । बच्चे प्राथमिक स्तर पर हिन्दी भाषा में सक्षम ही नहीं सक्षम प्लस हो जाएँ ।
इस संदर्भ में मेरा मानना है कि हिन्दी भाषा और साक्षरता शिक्षण की रूपरेखा एक दस्तावेज़ है , जिसमें कक्षा के मुख्य अधिगम लक्ष्य , निर्धारित दक्षताएं , विषय वस्तु , कक्षा प्रक्रिया के लिए प्रस्तावित रणनीतियाँ , समय-सीमा और आकलन आदि शामिल किए जाते हैं । इसके आधार पर ही अध्यापक अपनी  कक्षा के लिए एक विस्तृत शिक्षण योजना तैयार कर सकता है । मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार और राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद , नई दिल्ली की ओर से भी एक अधिगम से संबंधित दस्तावेज जारी किया गया है । ये दस्तावेज , वर्ष भर या कक्षा के लिए मुख्य अधिगम लक्ष्यों को प्रस्तुत करते है । इन लक्ष्यों को कक्षा में प्राप्त करने के लिए शिक्षक की ओर से एक रूपरेखा की जरूरत होती है । हिंदी भाषा शिक्षण रूपरेखा के आवश्यक घटक निम्न प्रकार से हैं –
अपेक्षित लक्ष्य और दक्षता की पहचान - किसी भी तरह के शिक्षण की रूपरेखा के लिए यह जरूरी है कि निर्धारित कक्षा के लिए अपेक्षित लक्ष्य और लक्षणों की पहचान पहले कर ली जाए । प्रत्येक कक्षा के लिए पाठ्यक्रम में विषय वार दक्षता सूची तय की जानी चाहिए । प्रत्येक दक्षता और इसकी उपलब्धि के आकलन को अच्छे से समझना भी अनिवार्य है ।
बच्चों के स्तर और भाषायी परिवेश का अध्ययन - भाषा शिक्षण में बच्चों के परिवेश , संस्कृति , स्थानीय भाषा इत्यादि को समझना आवश्यक है । कक्षा में शिक्षण कार्य करने से पूर्व एक शिक्षक को इस बारे में जानकारी ले लेना अनिवार्य होता है कि बच्चे की विद्यालय की भाषा और घर की भाषा अलग है कि नहीं । अगर बच्चे की घर की भाषा विद्यालय की भाषा से बिल्कुल अलग है तो शिक्षक की भाषा शिक्षण की रणनीति सामान्य रणनीति से अलग होनी चाहिए ।
कक्षा में भाषा शिक्षण के लिए समय निर्धारण - कक्षा के लिए भाषा शिक्षण की रणनीति बनाने के लिए यह तय करना आवश्यक है कि कक्षा में भाषा शिक्षण के लिए कितना समय उपलब्ध है । शोधों के द्वारा यह साबित हो चुका है कि बच्चों की भाषायी और साक्षरता उपलब्धि में कक्षा में शिक्षण कार्य के लिए दिये गए समय का काफी योगदान रहा है । हिंदी भाषा शिक्षण के लिए 90-120 मिनट का कालांश होना अनिवार्य है ।
शिक्षण के लिए विषयवस्तु और क्रम का निर्धारण एक व्यवस्थित तरीके के अंतर्गत किया जाना चाहिए – विद्यालय में भाषा शिक्षण के अंतर्गत विषयवस्तु और क्रम का निर्धारण एक व्यवस्थित तरीके से किया जाना चाहिए । चाहे वह मौखिक भाषा का कार्य हो , डिकोडिंग  का कार्य हो या पठन व लेखन की गतिविधियाँ हो । यह सब गतिविधियाँ लगभग रोज़ कराईं जानी चाहिए ।
विद्यालय में शिक्षण कार्य के लिए व्यवस्थागत रननीतियाँ भी सुनिश्चित की जानी चाहिए - विद्यालय में कई तरह की स्थानीय परिस्थितियाँ हो सकती हैं जो शिक्षक को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं । जैसे – बहुकक्षीय व्यवस्था , बहुभाषी कक्षा , बच्चों के स्तर पर काफी अंतर होना , आदि । शिक्षण रूपरेखा में इन बातों पर ध्यान रखना अत्यंत जरूरी है ।

शिक्षण के लिए गतिविधि और सामग्री का भी पूर्ण प्रबंध कक्षा-कक्ष में होना चाहिए – भाषा शिक्षण में मौखिक भाषा विकास का कार्य हो , डिकोडिंग  का कार्य हो या पठन व लेखन की गतिविधियाँ हो , सभी के क्रियान्वन के लिए शिक्षण अधिगम सामग्री का होना बहुत जरूरी है ।

आकलन और पुनरावृत्ति की योजना का समायोजन होना चाहिए – हिन्दी भाषा शिक्षण के अंतर्गत शिक्षण की रूपरेखा तैयार करते समय आकलन का व उसके उपरांत पुनरावृत्ति का व्यवस्थित प्रावधान होना चाहिए । पुनरावृत्ति और सीखने में पीछे चल रहे बच्चों के लिए विभेदीकृत शिक्षण का प्रावधान होना चाहिए ।
विद्यालयों में प्राथमिक स्तर पर हिन्दी भाषा का शिक्षण चार खंडीय रूपरेखा के अनुसार होना चाहिए । चार खंडीय रूपरेखा के तहत भाषा शिक्षण में सर्वप्रथम मौखिक भाषा के विकास पर बल दिया जाना चाहिए । मौखिक भाषा के अंतर्गत कक्षा- कक्ष में बच्चों को अधिक से अधिक बातचीत के अवसर दिए जाने चाहिए । कविता , बाल गीत का वाचन या गायन किया चाहिए । कहानी सुनना और उस पर चर्चा करना की गतिविधि भी करवाई जानी चाहिए । शिक्षक द्वारा कहानी पढ़कर सुनाना और उस पर चर्चा करना , चित्र व अनुभव पर चर्चा करना , बच्चों के द्वारा कहानी बनाना , बच्चों के द्वारा अपने शब्दों में कहानी सुनाना,  मौखिक खेल में अभिनय की गतिविधि आदि शामिल हैं । मौखिक भाषा के विकास के लिए कक्षा - कक्ष 15 से 20 मिनट का कालांश बच्चों को दिया जाना चाहिए ।
उसके पश्चात चार खंडीय रूपरेखा का दूसरा पहलू डिकोडिंग कौशल का विकास है । इसके अंतर्गत अध्यापक द्वारा बच्चों में वर्ण , अक्षर पहचान से संबंधित गतिविधियां करवाई जानी चाहिए । डिकोडिंग कौशल खेल गतिविधियों के माध्यम से विकसित किया जाना चाहिए । बच्चों से जोड़कर शब्द बनाना , शब्द पठन की गतिविधि करवाना इसके अंतर्गत शामिल होता है ।  डिकोडिंग संबंधित लेखन कौशल में  अक्षर , शब्द लिखना भी शामिल है । डिकोडिंग कौशल विकसित करने के लिए अध्यापक वर्ण ग्रिड , अक्षर ग्रिड , पासे का खेल , साँप सीढ़ी का खेल , बिंगो खेल आदि गतिविधियों का प्रयोग करके करवा सकता है । इसके लिए कक्षा-कक्ष में अध्यापक को 35 से 40 मिनट का समय बच्चों पर दिया जाना चाहिए ।
चार खंडीय रूपरेखा का तीसरा पहलू है - पठन कौशल विकसित करना । इसके अंतर्गत प्रिंट संबंधी अवधारणा समझ पाना , किताबों को पढ़ने का अभिनय करना , लोगोग्राफिक पठन करना , साझा पठन और चर्चा करना , किताब पढ़ना , पोस्टर चार्ट से पठन करना , पढ़ने का अभिनय करते हुए कुछ - कुछ शब्दों को पहचानना , छोटे-छोटे सरल पाठ पढ़ना , स्वतंत्र रूप से पाठ पढ़ कर समझना आदि शामिल हैं । पठन के अंतर्गत आदर्श वाचन मार्गदर्शन में पठन , स्वतंत्र पठन , साझा पठन आदि रणनीतियों का प्रयोग करते हुए अध्यापकों को बच्चों को पढ़ाना चाहिए । इसके लिए कक्षा-कक्ष में अध्यापक को 15 से 20 मिनट का समय बच्चों पर दिया जाना चाहिए ।
चार खंडीय रूपरेखा का चौथा पहलू है - लेखन कौशल का विकास करना । इसके अंतर्गत अध्यापक कक्षा-कक्ष में किसी चित्र , कहानी , घटना इत्यादि के बारे में लिखने को बच्चों को कहा जा सकता है । शब्दों की मदद से वाक्य बनाना , चित्र , बातचीत के आधार पर निर्देशित लेखन करना , स्वतंत्र लेखन करना , पहचाने गए अक्षरों व शब्दों को लिखना , चित्र बनाना और लिखना , सुनकर वर्ण व  शब्दों को लिखवाना आदि शामिल है । इसके लिए कक्षा-कक्ष में अध्यापक को 10 से 15 मिनट का समय बच्चों पर दिया जाना चाहिए ।
इस प्रकार हिंदी भाषा शिक्षण में यदि अध्यापक चार खंडीय रूपरेखा का प्रयोग करते हुए बच्चों को हिंदी भाषा पढ़ाता है तो नि:संदेह बच्चे हिंदी भाषा में सक्षम हो जाएंगे । आज चार खंडीय रूपरेखा के अतिरिक्त अध्यापक को विभेदीकृत शिक्षण पद्धति को भी अपनाना होगा । इसके अंतर्गत अध्यापक को उन बच्चों पर विशेष नजर रखनी होगी और विशेष प्रकार की रणनीतियों का प्रयोग करना होगा जो बच्चे सक्षम होने में पिछड़ रहे हैं ।  यदि अध्यापक विभेदीकृत शिक्षण पद्धति के माध्यम से विभिन्न रणनीतियों का प्रयोग करते हुए ऐसे बच्चों पर ध्यान देता है तो यह बच्चे पिछड्ने की बजाए अन्य बच्चों की तरह सक्षम होने में पूर्णत: सफल हो जाएँगे । ऐसा हो जाने पर बच्चे हिन्दी में सक्षम ही नहीं सक्षम प्लस हो जाएँगे । इसका लाभ बच्चों को अन्य विषयों में भी होगा ।

- डॉ विजय कुमार चावला ,हिन्दी प्राध्यापक {030013}

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5 Comments

  1. बहुत ही सार्थक लेख...💐💐

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  2. बहुत ही सुंदर👌👌👌
    बधाई के पात्र है आप सभी💐💐

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  3. इस तरह की गतिविधि बच्चों की आपसी-समझ-बूझ को बढ़ाने के साथ-साथ उनका सर्वांगीण विकास में सहायक सिद्ध होता है|

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  4. बहुत बढ़िया कार्य

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