"हर सपने का हकदार : बहुदिव्यांग बच्चों का संसार"
"मुस्कान के पीछे छिपे सपने : बहुदिव्यांग बच्चों की कहानी"
हर बच्चा अपने भीतर अनगिनत सपनों की दुनिया बसाए रहता है। कुछ सपने किताबों में लिखे होते हैं, कुछ आँखों में चमकते हैं और कुछ खेल-खिलौनों के बीच आकार लेते हैं। लेकिन जब हम बहुदिव्यांग बच्चों की ओर देखते हैं, तो हमें उनकी आँखों में भी वही मासूम चमक दिखाई देती है—वह चमक, जो बताती है कि उनके मन में भी सपनों का आसमान उतना ही विशाल है जितना अन्य बच्चों का।
ये बच्चे शायद सामान्य बच्चों की तरह सहजता से दौड़-भाग नहीं कर पाते, न ही उनके लिए बोलना या सुनना उतना सरल होता है। फिर भी, उनके भीतर खेलने, घूमने, सजने-संवरने और जीवन को पूरी तरह जीने की वही गहरी इच्छा होती है। जब वे दूसरों को खेलते देखते हैं, तो उनकी आँखों में भी वही ललक झलकती है। जब वे किसी त्योहार या उत्सव में रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं, तो उनकी मुस्कान और भी उज्ज्वल हो उठती है। बहुदिव्यांग बच्चों की सबसे बड़ी ताकत है उनकी निर्मल संवेदनाएँ। उनका मन बिल्कुल स्वच्छ दर्पण की तरह होता है—जहाँ छल-कपट की जगह केवल सच्चाई और प्रेम बसता है। अक्सर हमें लगता है कि ये बच्चे कुछ कर पाने में असमर्थ हैं, लेकिन सच तो यह है कि इनकी भावनाएँ और सपने सामान्य बच्चों से भी कहीं अधिक गहरे और प्रखर होते हैं। समाज को यह समझना होगा कि इन बच्चों के सपनों को पंख देने की जिम्मेदारी हमारी है। जब हम उन्हें अवसर, प्रोत्साहन और स्नेह देते हैं, तो वे असंभव प्रतीत होने वाले कार्य भी संभव कर दिखाते हैं। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, कला हो या खेल—इन बच्चों के भीतर भी अपार प्रतिभा छिपी होती है। इनकी मुस्कान और छोटे-छोटे प्रयास हमें यह सिखाते हैं कि जीवन का असली सौंदर्य सीमाओं में नहीं, बल्कि संघर्ष के बीच भी सपने देखने की हिम्मत में है। बहुदिव्यांग बच्चों के सपने हमें याद दिलाते हैं कि हर आत्मा स्वतंत्र है, हर दिल धड़कता है और हर आँख में चमकने का अधिकार है।
निष्कर्ष :
बहुदिव्यांग बच्चों को दया नहीं, अवसर चाहिए। उनकी मासूम आँखों में जो सपने हैं, वे भी उतने ही कीमती हैं जितने किसी अन्य बच्चे के। हमें केवल इतना करना है कि उनके सपनों को पूरा करने की राह में हम साथी बनें, ताकि उनकी मुस्कान दुनिया के लिए सबसे सुंदर संदेश बन सके।
श्रीमती ज्योति सराफ
व्याख्याता वाणिज्य
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कुरदा
0 Comments