विराम चिन्ह/Viram Chinh/

 विराम चिन्ह



भिन्न- भिन्न प्रकार के भावों और विचारों को स्पष्ट करने के लिए जिन चिह्नों का प्रयोग वाक्य के बीच या अंत में किया जाता है, उन्हें 'विराम चिह्न' कहते है।

दूसरे शब्दों में- विराम का अर्थ है- 'रुकना' या 'ठहरना'। वाक्य को लिखते अथवा बोलते समय बीच में कहीं थोड़ा-बहुत रुकना पड़ता है जिससे भाषा स्पष्ट, अर्थवान एवं भावपूर्ण हो जाती है। लिखित भाषा में इस ठहराव को दिखाने के लिए कुछ विशेष प्रकार के चिह्नों का प्रयोग करते हैं। इन्हें ही विराम चिह्न कहा जाता है।

यदि विराम चिह्न का प्रयोग न किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

जैसे- (1) रोको मत जाने दो।

(2)  रोको, मत जाने दो। 

(3)रोको मत, जाने दो।

उपर्युक्त उदाहरणों में पहले वाक्य में अर्थ स्पष्ट नहीं होता, जबकि दूसरे और तीसरे वाक्य में अर्थ तो स्पष्ट हो जाता है लेकिन एक-दूसरे का उल्टा अर्थ मिलता है, जबकि तीनो वाक्यों में वही शब्द है। दूसरे वाक्य में 'रोको' के बाद अल्पविराम लगाने से रोकने के लिए कहा गया है, जबकि तीसरे वाक्य में 'रोको मत' के बाद अल्पविराम लगाने से किसी को न रोक कर जाने के लिए कहा गया है। इस प्रकार विराम- चिह्न लगाने से दूसरे और तीसरे वाक्य को पढ़ने में तथा अर्थ स्पष्ट करने में जितनी सुविधा होती है, उतनी पहले वाक्य में नहीं होती। अतएव विराम चिह्नों के विषय में पूरा ज्ञान होना आवश्यक है।

हिंदी में प्रचलित प्रमुख विराम चिह्न निम्नलिखित है-

(1) अल्प विराम (,)

(2) अर्द्ध विराम (;)

(3) पूर्ण विराम (।)

(4) उप विराम [:]

(5) विस्मयादिबोधक चिह्न (!)

(6) प्रश्नवाचक चिह्न (?)

(7) कोष्ठक (())

(8) योजक चिह्न (-)

(9) अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न ("...")

(10) लाघव ओके (0)

(11) आदेश चिह्न (:-)

(12) रेखांकन चिह्न (______)

(13) लोप चिह्न (...)

(1) अल्प विराम (Comma) (,) - वाक्य में जहाँ थोड़ा रुकना हो या अधिक वस्तुओं, व्यक्तियों आदि को अलग करना हो वहाँ अल्प विराम (,) चिह्न का प्रयोग किया जाता है। अल्प का अर्थ होता है- थोड़ा। अल्पविराम का अर्थ हुआ- थोड़ा विश्राम अथवा थोड़ा रुकना। बातचीत करते समय अथवा लिखते समय जब हम बहुत-सी वस्तुओं का वर्णन एक साथ करते हैं, तो उनके बीच-बीच में अल्पविराम का प्रयोग करते है; जैसे-

जैसे-नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।" राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न राजमहल में पधारे।

सुनो, सुनो, वह क्या कह रही है।

नहीं, नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता।

(2) अर्द्ध विराम (;) - जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक ठहरते है तथा पूर्ण विराम से कम ठहरते है, वहाँ अर्द्ध विराम का चिह्न (;) लगाया जाता है। आम तौर पर अर्द्धविराम दो उपवाक्यों को जोड़ता है जो थोड़े से असंबद्ध होते है एवं जिन्हें 'और' से नहीं जोड़ा जा सकता है। जैसे-

फलों में आम को सर्वश्रेष्ठ फल माना गया है; किन्तु श्रीनगर में और ही किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते हैं।

दो या दो से अधिक उपाधियों के बीच अर्द्धविराम का प्रयोग होता है; जैसे- एम. ए.; बी, एड. । एम. ए.; पी. . एच. डी.। एम. एस-सी.; डी. एस-सी. ।

(3) पूर्ण विराम (।) - जहाँ एक बात पूरी हो जाये या वाक्य समाप्त हो जाये वहाँ पूर्ण विराम (1) चिह्न लगाया जाता है। पूर्णविराम का अर्थ है, पूरी तरह रुकना या ठहरना। सामान्यतः जहाँ वाक्य की गति अन्तिम रूप ले ले, विचार के तार एकदम टूट जायें, वहाँ पूर्णविराम का प्रयोग होता है।

यह हाथी है। वह लड़का है। मैं आदमी हूँ। तुम जा रहे हो। रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून । पानी गए न ऊबरे मोती, मानुस, चून ।।

(4) उप विराम (:)- जहाँ वाक्य पूरा नहीं होता, बल्कि किसी वस्तु अथवा विषय के बारे में बताया जाता है, वहाँ अपूर्णविराम चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

कृष्ण के अनेक नाम है: मोहन, गोपाल, गिरिधर आदि।

(5) विस्मयादिबोधक चिह्न (!)- इसका प्रयोग हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे-

वाह ! आप यहाँ कैसे पधारे ? हाय! बेचारा व्यर्थ में मारा गया। हे ईश्वर ! सबका कल्याण हो ।

(6) प्रश्नवाचक चिह्न (?)- बातचीत के दौरान जब किसी से कोई बात पूछी जाती है अथवा कोई प्रश्न पूछा जाता है, तब वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- तुम कहाँ जा रहे हो?

वहाँ क्या रखा है?

(7) कोष्ठक (())- वाक्य के बीच में आए शब्दों अथवा पदों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- लता मंगेशकर भारत की कोकिला (मीठा गाने वाली) हैं।

(8) योजक चिह्न (-)- हिंदी में अल्पविराम के बाद योजक चिह्न का प्रयोग अधिक होता है। दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इसे 'विभाजक चिह्न' भी कहते है।

जैसे- जीवन में सुख-दुःख तो चलता ही रहता है।

रात-दिन परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है। दाल-रोटी, दही-बड़ा, सीता-राम, फल-फूल।

(9) अवतरण चिह्न या उद्धरणचिह्न (Inverted Comma) ("... ") - किसी की कही हुई बात को उसी तरह प्रकट करने के लिए अवतरण चिह्न ("...") का प्रयोग होता है।

जैसे- राम ने कहा, "सत्य बोलना सबसे बड़ा धर्म है।" "जीवन विश्व की सम्पत्ति है।"- जयशंकर प्रसाद

(10) लाघव चिह्न (०)- किसी बड़े तथा प्रसिद्ध शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए उस शब्द का पहला अक्षर लिखकर उसके आगे शून्य (०) लगा देते हैं। यह शून्य ही लाघव चिह्न कहलाता है जैसे- पंडित का लाघव-चिह्न पं०, है।

डॉक्टर का लाघव-चिह्न डॉ०

प्रोफेसर का लाघव-श्रृंग प्रो0

(11) आदेश चिह्न (:-) - किसी विषय को क्रम से लिखना हो तो विषय-क्रम व्यक्त करने से पूर्व आदेश चिह्न (:-) का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- वचन के दो भेद है:- 1. एकवचन, 2. बहुवचन।

(12) रेखांकन चिह्न (Underline) (_____) - वाक्य में महत्त्वपूर्ण शब्द, वाक्य रेखांकित कर दिया जाता है।

जैसे-गोदान उपन्यास, प्रेमचंद द्वारा लिखित सर्वश्रेष्ठ कृति है।

(13) लोप चिह्न (Mark of Omission) (...)- जब वाक्य या अनुच्छेद में कुछ अंश छोड़ कर लिखना हो तो लोप चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

जैसे-गाँधीजी ने कहा, "परीक्षा की घड़ी आ गई है.... हम करेंगे या मरेंगे"।

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